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________________ एस धम्मो सनंतनो निर्वाण का परमपद तुम्हारे खयाल में भी न आएगा। गुंचा चटका और आ पहुंची खिजां फस्ले-गुल की थी फकत इतनी बिसात इधर खिला भी नहीं फूल कि आ गया पतझड़। इतनी ही बिसात है। आदमी को तुमने खिलते देखा? कली खिल कहां पाती है? कभी-कभी खिलती है। तब तो हमें बुद्धों का स्मरण हजारों साल तक रखना पड़ता है। बुद्धों का मतलब है, जिनकी कली खिली। अधिक लोग तो कली की तरह ही मर जाते हैं। गुंचा चटका और आ पहुंची खिजां फस्ले-गुल की थी फकत इतनी बिसात बस इतनी सी सीमा। खिल भी न पाए और मौत आ गयी। हंस भी न पाए और। आंसू घिर आए। डोला उठा भी न था कि अर्थी उठ गयी। इसे गौर से जो देखता है, पहचानता है, समझता है, धीरे-धीरे पाता है, यहां घर बनाने जैसा नहीं। अमृत में ... घर बनाएंगे, मरणधर्मा में क्या घर बनाना! निर्वाण में घर बनाएंगे, संसार में क्या घर बनाना! यहां कुछ भी तो साथ देगा नहीं। संगी-साथी सब दो दिन के आश्वासन हैं, सांत्वना हैं, संतोष हैं। कौन किसका साथी है? राह पर मिल लिए, थोड़ी देर साथ "हो लिए, फिर राहें अलग हो जाती हैं, फिर हम अलग हो जाते हैं। कौन होता है बुरे वक्त की हालत का शरीक मरते दम आंख को देखा है फिर जाती है औरों की तो बात ही छोड़ दो, अपनी ही आंख फिर जाती है। वही साथ नहीं देती। कौन होता है बुरे वक्त की हालत का शरीक मरते वक्त देखा है? मरते दम आंख को देखा है फिर जाती है यहां सब खयाली पुलाव है। यहां सब सपने का जाल है। यहां कोई अपना नहीं। यहां कोई संगी-साथी नहीं। शाश्वतता में साथ खोजो। बुद्ध का वचन है, अमृतपद। जो कभी मरे न, जो मरणधर्मा नहीं है। 'अमृतपद का दर्शन किए बिना सौ साल जीने की अपेक्षा अमृतपद का दर्शन कर एक दिन जीना भी श्रेष्ठ है।' ____'उत्तम धर्म का दर्शन किए बिना सौ साल जीने की उपेक्षा उत्तम धर्म का दर्शन कर एक दिन जीना भी श्रेष्ठ है।' उत्तम धर्म उस प्रक्रिया का नाम है जिससे अमृतत्व उपलब्ध होता है। उत्तम धर्म उस विधि का नाम है जिससे तुम समय से हटकर शाश्वत के करीब आते हो। उत्तम धर्म उस कीमिया का नाम है जिससे तुम दूसरों के आरोपित चरित्र से मुक्त होकर अपने शील के निकट आते हो। उत्तम धर्म उस विज्ञान का नाम है जिससे तुम दुर्घटना से बचते और तुम्हारे जीवन में गंतव्य दिशा आती। 26
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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