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झुकने से उपलब्धि, झुकने में उपलब्धि है। सौ में कोई एकाध सौभाग्यशाली बच पाता है। जो बच जाता है, वह बुद्धत्व को उपलब्ध होता है। ___'अमृतपद (निर्वाण) का दर्शन किए बिना सौ साल जीने की अपेक्षा अमृतपद का दर्शन कर एक दिन जीना भी श्रेष्ठ है।'
जिसे हम जीवन कहते हैं, क्षणभंगुर है। अभी है, अभी गया। अभी था, अभी न हुआ। आभास की तरह। चांद के प्रतिबिंब की तरह है झील में। जरा सी झील हिली, चांद का प्रतिबिंब टूटा, बिखरा-चांदी फैल गयी। अभी था, अभी खो गया। यह जो संसार है, स्वप्न से ज्यादा नहीं है। क्षणभंगुर है।। __ इसके साथ बहुत माया-मोह में मत पड़ जाना। क्योंकि तुम जब तक माया-मोह बसा पाओगे, यह बदल जाता है। यह बेईमान है। इसका विश्वास मत कर लेना। इधर तुम घर बनाने को तैयार थे, तब तक भूमि ही खिसक जाती है। तुम जब तक नाव बनाकर तैयार हुए, नदी ही विदा हो जाती है। तुम्हारा और इस संसार का कभी मेल न होगा। क्योंकि यह पल-पल भागा जाता है, पल-पल बदला जाता है।
जिसने संसार की क्षणभंगुरता देख ली, उसके ही जीवन में निर्वाण का, शाश्वत का स्मरण शुरू होता है।
विकसते मुरझाने को फूल उदय होता छिपने को चंद शून्य होने को भरते मेघ दीप जलता होने को मंद यहां किसका अनंत यौवन! अरे अस्थिर छोटे जीवन! छलकती जाती है दिन-रैन लबालब तेरी प्याली मीत ज्योति होती जाती है क्षीण मौन होता जाता संगीत करो नैनों का उन्मीलन,
क्षणिक है मतवाले जीवन! जरा आंख को मींड़कर देखो-दीया चुकता जाता है। जरा आंख खोलकर देखो-संगीत समाप्त होता जाता है। जरा गौर से चारों तरफ देखो-यहां कुछ भी ठहरा हुआ नहीं है, सब बदला जा रहा है।
इस बदलते हुए प्रवाह में तुमने घर बनाने की सोची! सराय तक बनाते, तो ठीक था। रात का विश्राम ठीक था, सुबह चल पड़ना होगा। रुक जाते, पड़ाव समझते, ठीक था, समझदारी थी; घर बनाने बैठ गए हो! स्थाई घर बना रहे हो। अस्थाई तत्वों से स्थाई घर बनाने की कामना की है! तो दुख पाओगे। तो भरमोगे, भटकोगे: और
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