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________________ एस धम्मो सनंतनो न हो। क्योंकि जिसको दांत का डाक्टर होना था, वह अगर वीणा लेकर बैठ जाए, तोड़ डालेगा। उनका वीणावादन लोगों के प्राणों में शांति न लाएगा, घबड़ाहट ले आएगा। वे लोगों की शांति को नष्ट कर देंगे। जिसको जो होना है, वही हो। लेकिन यह तो कैसे? हमें उत्पत्ति का ही पता नहीं-हम कैसे बनते हैं! हम कैसे होते हैं! हम कैसे बिखरते हैं! यह तो हमें जब तक अपने स्वभाव से पहचान न होगी तब तक हम दुर्घटना ही रहेंगे। बुद्ध कहते हैं, 'उत्पत्ति और विनाश का दर्शन किए बिना सौ साल जीने की अपेक्षा उत्पत्ति और विनाश के दर्शन का एक दिन जीना भी श्रेष्ठ है।' __जिसने ठीक से देख लिया, कहां से आता हूं, क्या है मेरा मूल स्रोत, कहां जाता हूं, क्या है मेरा गंतव्य, तो कई बातें दिखायी पड़ जाएंगी। एक बात तो यह दिखायी पड़ेगी कि शरीर पैदा होता है, शरीर समाप्त हो जाता है। क्या मेरे भीतर कुछ और है, जो न कभी पैदा होता, न कभी समाप्त होता? अगर शरीर को तुमने गौर से देख लिया, तो तुम्हें उस सनातन का स्वर भी भीतर सुनायी पड़ने लगेगा, जो न कभी शुरू हुआ और न कभी समाप्त होता है। ___ अभी तो तुमने शरीर की मंजिल को अपनी मंजिल समझ रखा है, वही दुर्घटना हो गयी है। अभी तुमने आजीविका को जीवन समझ रखा है, वही दुर्घटना हो गयी है। जीवन कुछ और है, सिर्फ रोटी-रोजी कमा लेना ही नहीं। रोटी के ही सहारे कौन कब जी पाया है? रोटी जरूरी है, पर्याप्त नहीं। बिना उसके न जी सकोगे, लेकिन अगर उसी से जीए, जीना न जीना बराबर है। होड़ देवों से लगायी, मनुज भी बनना न सीखा विश्व को वामनपगों से नापने की कामना है आदमी क्या से क्या नहीं होना चाहता? लेकिन वही नहीं हो पाता, जो हो सकता था। होड़ देवों से लगायी, मनुज भी बनना न सीखा विश्व को वामनपगों से नापने की कामना है पहले तुम वही हो जाओ, जो तुम हो सकते हो। पहले अपनी नियति को पहचान लो। पहले तुम वही हो जाओ, जो तुम हो। तुम्हारा होना ही तुम्हारा भाग्य है। उसकी पहचान के बिना इर्द-गिर्द तुम कितने ही चक्कर काटो, तुम दुर्घटना ही रहोगे। कहां से बढ़ के पहुंचे हैं कहां तक इल्मो-फन साकी मगर आसूदा इन्सां का न तन साकी न मन साकी । कितना ज्ञान बढ़ गया! कितना इल्म, कितना फन, कितनी कला, कितना विज्ञान, लेकिन न आदमी के तन को शांति है, न मन को शांति है। कहां से बढ़ के पहुंचे हैं कहां तक इल्मो-फन साकी मगर आसूदा इन्सां का न तन साकी न मन साकी
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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