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झुकने से उपलब्धि, झुकने में उपलब्धि
कहीं कुछ भूल हो रही है । स्वभाव से पहचान नहीं बैठ रही है। इल्म और फन किसी और मार्ग पर लिए जा रहे हैं। आदमी कुछ और होने को बना था । आदमी के भीतर कुछ और है जो उसे तृप्त करेगा, उसकी प्यास को बुझाएगा, और इल्मो-फन. और बताते हैं। जरा ध्यान रखना, दुर्घटना इतने जोर से घट रही है, घटती रही है कि बहुत संभावना है, तुम भी धोखे में आ जाओ।
अक्सर ऐसा होता है, लोग अनुकरण में लग जाते हैं । तुमने देखा, किसी ने नया मकान बनाया। बस, तुम्हें जरूरत न थी क्षणभर पहले तक इस नए मकान की, क्षणभर पहले तक तुमने स्वप्न भी न देखा था इस मकान का, क्षणभर पहले तक तुम्हें खयाल भी न था कि अपने पास जो मकान है वह ठीक नहीं, किसी और ने मकान बनाया, बस अनुकरण पैदा हुआ। चले तुम । अब तुम भूल ही गए कि इस मकान को बनाने में वर्षों लगेंगे। यह जरूरत है तुम्हारी ? यह तुम सच में चाहते हो ? वर्ष इस पर खराब करने जैसे हैं? इसे सोचकर, समझकर, होश से तुम चुन रहे हो ? कि सिर्फ एक पागलपन ने, एक जुनून ने पकड़ा कि पड़ोसी के पास है, मेरे पास क्यों न हो? किसी के पास कार देख ली, तुम बेचैन हो गए।
ध्यान रखना, अनुकरण से जो चलेगा, वह थपेड़ों में जीएगा। वह समय को ऐसे ही गंवा देगा। तुम अपनी जरूरत को समझना । अपने भीतर की आंतरिक जरूरंत को पहचानना। और अपने स्वभाव को देखना कि मेरे लिए क्या हितकर है ? • मेरी आंतरिक आकांक्षा, अभीप्सा क्या है? मैं क्या पाकर सुखी हो सकूंगा ? तुम यह मत देखना कि दूसरे क्या पाकर सुखी हो गए हैं।
पहली तो बात, वे सुखी हुए हैं या नहीं, तुम तय नहीं कर सकते। किसी के पास बड़ा मकान है, इससे कोई सुखी हो गया है, ऐसा मत सोच लेना । तुमसे छोटे मकान वाले तुमको भी सुखी समझ रहे हैं। किसी के पास बड़ी कार है, इससे वह सुखी हो गया है, ऐसा मत समझ लेना । सुख चेहरे पर है, वह दूसरे को दिखाने के ल है | चेहरे बाजारू हैं। उनको हम बाजार में काम लाते हैं, घर पर रख देते हैं। मुखौटे हैं।
फिर दूसरी बात, हो सकता है दूसरा सुखी हो गया हो, उसके स्वभाव के साथ कुछ तालमेल बैठा हो । लेकिन तुम्हारे स्वभाव के साथ तालमेल बैठेगा?
अपनी अभीप्सा को शुद्ध-शुद्ध पहचानना जरूरी है आदमी के लिए, ताकि वह दुर्घटनाओं से बच जाए। अन्यथा मैं अनेकों को देखता हूं, वे सब दुर्घटनाओं में ग्रस्त हैं। जहां उन्हें जाना नहीं था, चल पड़े। पहुंच जाएं तो परेशान होंगे, क्योंकि तब पाएंगे, अरे! यहां तो कभी आना ही न चाहा था। जहां पहुंच गए, जहां पहुंचने के लिए जीवनभर जद्दोजहद की, वहां पहुंचकर पता चला कि यह तो अपनी मंजिल ही न थी। अब लौटना भी मुश्किल हो गया। लौटने का समय भी न रहा, सांझ हो गयी । अब तो रात घिरने लगी। तब वे तड़फेंगे। एक-एक क्षण बहुमूल्य है । स्वभाव से
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