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________________ झुकने से उपलब्धि, झुकने में उपलब्धि विनाश के दर्शन का एक दिन जीना भी श्रेष्ठ है।' तुम्हें यही पता नहीं, कहां से आते हो, कहां जाते हो, कौन हैं? फिर भी तुम किस मुंह से कहते हो जीवित हो! और इससे बड़ी बेहोशी क्या होगी? और सोयापन क्या होगा? नींद में और जागरण में और फर्क क्या होगा? न पता कहां से आते, न पता कहां जाते। न पता क्यों हैं, क्या हैं, किसलिए हैं। ये कैसे तुम लकड़ी के एक टुकड़े की तरह नदी में बहे चले जाते हो-न कोई गंतव्य है, न कोई दिशा है, न कोई बोध है-थपेड़ों पर। परिस्थितियां जहां ले जातीं। तुम एक दुर्घटना हो। और दुर्घटना के ऊपर उठना साधना है। पश्चिम में एक शब्द जोर से प्रचलित होता जा रहा है-एक्सीडेंटल मैन। दुर्घटनात्मक आदमी। आदमी एक दुर्घटना मालूम होता है। ऐसा लगता है, चीजें घट रही हैं, घटती जाती हैं; कुछ भी हो रहा है, क्यों हो रहा है, सन्निपात जैसा मालूम होता है। कुछ कारण नहीं दिखायी पड़ता। कुछ आकस्मिक संयोग मिल जाते हैं, कुछ हो जाता है, फिर तुम छिटक जाते हो; फिर कुछ संयोग मिल जाते हैं, फिर हो जाता है। भीतरी कोई जैसे समस्वरता नहीं है जीवन में। ऐसे ही समझो कि गुलाब का पौधा है, चमेली के पास लगा था, चमेली का फूल खिल आया है। पौधा गुलाब का था, चमेली के पास लगा था, नकल में पड़ गया। चमेली का फूल खिल आया है। अब मुश्किल हुई खड़ी! यह चमेली का फूल गंधहीन होगा, क्योंकि गंध तो गुलाब की हो सकती थी। यह चमेली का फूल छाती पर बोझ होगा। यह फूल हो ही नहीं सकता, पत्थर होगा। क्योंकि फूल का तो मतलब यह है कि प्राण भीतर फूल जाएं, खिल जाएं, प्रफुल्लित हो जाएं। भीतर की नियति तो अधूरी रह गयी, अधमरी रह गयी, यह तो कुछ का कुछ हो गया। दुर्घटना का अर्थ है, जो तुम होने को हो वह तो नहीं हो पाते, कुछ का कुछ हो जाते हो। जैसा मैं लोगों को देखता हूं, किसी को भी उस जगह नहीं पाता जहां उन्हें होना चाहिए। लोग असंगत स्थितियों में बैठे हैं। - एक मित्र दस दिन पहले वापस इंग्लैंड गए। संन्यस्त हुए, दांत के डाक्टर हैं। दस साल से दांत के डाक्टर हैं, छोड़ना चाहते हैं, परेशान हैं, संगीतज्ञ होने की धुन थी सदा से। अब संगीतज्ञ और दांत का डाक्टर! कोई लेना-देना नहीं। दांतों की कटकटाहट सुनी है, संगीत सुना कभी? __मैंने पूछा, दस साल? वे बोले, सोचने में ही! दांत का डाक्टर भी नहीं हो पा रहा हूं, क्योंकि मन वहां लगता नहीं। करता हूं दिनभर, मगर लगता है, यह मैं क्यों समय खो रहा हूं! यह जीवन गया, यह दिन और गया। यह एक दिन और बीता। मौत और करीब आयी। जो हाथ वीणा को छूने चाहिए थे, जो वीणा को छूने को आतुर हैं, वे व्यर्थ लोगों के दांतों की सफाई करने में लगे हैं। दांत के डाक्टर होने में कुछ बुराई नहीं है। लेकिन तुम्हारी नियति हो, दुर्घटना
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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