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________________ एस धम्मो सनंतनो अगर जीना हो! अगर न जीना हो, तुम्हारी मर्जी, मशाल को जलाओ ही मत। अगर दूसरे भी आग लगा जाएं, तो धुआं फेंकते रहो। जरा गौर से अपनी मशालें देखना। धुआं ही धुआं निकलता रहता है। लपट का पता ही नहीं चलता। लेकिन जहां भी धुआं है, वहां लपट छिपी है। जरा हिम्मत जुटाओ! जरा खोजो! धुआं खबर दे रहा है आग की। धुआं ही धुआं उठाते रहोगे जिंदगी में? फिर सुख न पाया, आनंद न पाया, रस न पाया-शिकायत किसकी? 'आलसी, अनुद्यमी होकर सौ साल जीने की अपेक्षा दृढ़ उद्यमशील का एक दिन जीना भी श्रेष्ठ है।' बुद्धपुरुष की तरह एक क्षण जी लेना भी श्रेष्ठ है, हजारों साल बुद्धओं की भांति जीने की बजाए। एक क्षण की प्रज्वलित चेतना सब झलका जाती है। एक क्षण का प्रज्वलित बोध सारे जगत को खोल जाता है, सारे रहस्य उघाड़ जाता है, सब पर्दे उठा जाता है, सब चूंघट हटा जाता है। सब जो मिलना चाहिए, एक क्षण में मिल सकता है, तुम्हारी त्वरा चाहिए। बहुत शेष है, बहुत शेष है, बहुत शेष है हम मत भूलें, हम मत अपना गुणगान करें जिस घर को छूने, सागर की लहरें दौड़ रही हैं आओ, उस घर के मालिक से कुछ पहचान करें __ ऐसा सोचकर मत बैठे रहना कि बहुत शेष है, बहुत शेष है, बहुत शेष है, जल्दी क्या है? ऐसा सोच-सोचकर आलस्य को मत सजाते-संवारते रहना। जिस घर को छूने, सागर की लहरें दौड़ रही हैं। जरा गौर से देखो सागर की लहरों को। कितनी उत्तुंग हैं, कितनी उतावली हैं, कितनी प्यासी हैं, कैसी भाग-दौड़ मची है, कैसी प्रतिस्पर्धा है! __जिस घर को छूने, सागर की लहरें दौड़ रही हैं आओ, उस घर के मालिक से कुछ पहचान करें और तुम्हें मौका मिला है मनुष्य होने का। घर से ही नहीं, घर के मालिक से पहचान हो सकती है। लहरें तो किनारों को छूकर लौट जाएंगी, किनारे का राजा अपरिचित रह जाएगा। लहरें तो घर की दीवालों को छूकर लौट जाएंगी, तो भी इतनी उतावली हैं! तुम घर के मालिक से पहचान कर सकते थे, लेकिन तुम्हारे चैतन्य के सागर की लहरें उठतीं तो ही। उद्दाम वेग चाहिए, त्वरा चाहिए। ऐसे धीमे-धीमे टिमटिमाते-टिमटिमाते जीना क्यों? भभककर दोनों ओर से जले मशाल, उसको ही बुद्ध जीवन कहते हैं। तब तुम्हारे जीवन में एक क्रांति घटित होती है-लंबाई समाप्त हो जाती है, गहराई शुरू होती है। तब तुम ऐसे एक लहर से दूसरी लहर पर नहीं जाते, एक लहर से सीधे सागर की गहराई में जाते हो। ___'उत्पत्ति और विनाश का दर्शन किए बिना सौ साल जीने की अपेक्षा उत्पत्ति और 20
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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