SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो सच्चे बनने की चेष्टा ही मत करना, नहीं तो सारा समाज विपरीत हो जाएगा। बाप अपने बेटे से कहता है, सच बोलो। फिर कोई आया है मेहमान, घर के बाहर खड़ा है, और बाप बेटे से कहता है, कह दो घर में नहीं हैं। और वह बेटा कहता है, सच बोलूं? तब अड़चन शुरू होती है। यह बेटा दुश्मन जैसा मालूम पड़ेगा, जब यह कहेगा सच बोलूं? और अगर यह बेटा जाकर कह दे कि पिताजी भीतर हैं और उन्होंने कहा है कि घर पर नहीं हैं, तो समझ में आएगा कि सच...! बाप चाहता भी नहीं था कि सच बोलो। वह तो यह कह रहा था कि अपने बेटों को भी यही सिखा देना कि सच बोलो। बोलता कौन है! ये सिखाने की बातें हैं। ये सामाजिक रीति-रिवाज हैं, औपचारिकता है। सच बोलने ही मत लगना। सच बोलने की बात करते रहना, इससे झूठ बोलने में सुविधा होती है। सच की चर्चा करो! एक हाथ सच की बात करता रहे, दूसरे हाथ से जेब काट लो। बेईमानी करने के लिए ईमानदारी का थोड़ा सा धआं तो पैदा करना जरूरी है। असल में अगर तुम साफ-साफ बेईमान हो जाओ, तो तुम बेईमानी न कर सकोगे। कैसे करोगे? अगर तुम सबसे कह दो कि मैं झूठ बोलता हूं, तो तुम सच्चे हो गए। अब और कैसे झूठ बोलोगे? अगर तुम लोगों से कह दो कि मैं चोर हूं, और चोरी करो-कैसे चोरी कर पाओगे? तब तो अचौर्य की दिशा में यात्रा शुरू हो गयी तुम्हारी। ___ अगर चोरी करनी है, तो शोरगुल मचाना कि चोरी पाप है; डंका बजाना कि चोरी पाप है। इतने जोर से बजाना कि कोई यह तो सोच ही न सके कि तुम, और चोरी कर सकते हो। इतना शोरगुल मचाने वाला आदमी चोरी करेगा! कभी नहीं। जिनकी तुम चोरी करोगे, वे भी यह भरोसा न कर सकेंगे कि यह आदमी, और चोरी करेगा! तो चोर को अगर समझ हो, तो वह अचौर्य की शिक्षा देता है। झूठे को अगर थोड़ी अकल होती है, तो वह सच का शास्त्र फैलाता है। उसी के सहारे झूठ चलता है। झूठ के पास अपने पैर नहीं। उसको सच के पैर उधार लेने पड़ते हैं। बेईमानी के पास अपना बल नहीं। उसे ईमानदारी की आत्मा उधार लेनी पड़ती है। अधर्म खुद नहीं चल सकता, पंगु है। उसे धर्म के कंधे पर बैठना पड़ता है। इसलिए तो मंदिरों की गहराई में तुम खोजोगे, तो धर्म को ऊपर, अधर्म को भीतर पाओगे। पाखंड जी सकता है तभी, जब वह घोषणा करता रहे कि पाखंड नहीं हूं मैं। यही है सत्य, प्रचार जारी रहे। सदियों का प्रचार, झूठ को सच जैसा बताने लगता है। ___ चरित्र का अर्थ है, किसी के द्वारा थोपी गयी धारणाओं का अंधानुकरण नहीं, अपनी ही आंख से परखे गए मार्गों का अनुसरण। .. जहां भुजा का पंथ एक हो, अन्य पंथ चिंतन का सम्यक-रूप नहीं खुलता उस द्विधाग्रस्त जीवन का तुम्हारा हाथ कुछ करे, तुम्हारा मन कुछ करे, तो तुम दुविधा में रहोगे। तुम्हारा 18
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy