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झुकने से उपलब्धि, झुकने में उपलब्धि
बजती हों तालियां अगर तो कान न दो और तब संघर्ष से, घर्षण से, भूल-चूक से, गिरने-उठने से, भटकने से, फिर राह पर आने से, तुम्हारे भीतर निखार आता है। तुम पकते हो। अनुभव पकाते हैं। बस जो भी करो, बोधपूर्वक करना, ध्यानपूर्वक करना। जो भी करो, निरीक्षण करते हुए करना। सजग-भाव से करना। वही ध्यान का अर्थ है।
तो कोई भी तुम्हें भटका न पाएगा। आज नहीं कल तुम्हारे भीतर उस शील की गंध उठेगी, जो किसी के द्वारा आरोपित नहीं है। जिसे तुमने अर्जित किया। जो तुम्हारी संपदा है। जिसके तुम मालिक हो। जो तुम्हारी अपनी अंतर्दृष्टि का तुम्हारे बाह्य-जीवन में फैलाव और विस्तार है, वह तुम्हें आभामंडल की तरह घेरे रहेगा।
नर का भूषण विजय नहीं
केवल चरित्र उज्ज्वल है __ लेकिन उज्ज्वल चरित्र का अर्थ दूसरों की व्याख्या नहीं है। किसको दूसरे उज्ज्वल चरित्र कहते हैं, इससे कोई संबंध नहीं है। उज्ज्वल चरित्र का अर्थ है, ध्यान के उजाले में पाया गया। अपने बोध से पाया गया। फिर दुनिया चाहे तुम्हें चरित्रहीन कहे...। बहुत बार ऐसा हुआ है, दुनिया ने जिन्हें चरित्रहीन कहा, समय ने बताया वे चरित्रवान थे। और दुनिया जिन्हें चरित्रवान मानती रही, वे कहां खो गए, धूल में कहां मिट गए, उनका कुछ पता नहीं।।
जीसस को लोगों ने चरित्रहीन कहा। जीसस से बड़े चरित्रवान व्यक्ति को तुम खोज सकोगे? लेकिन चरित्रहीन कहा। न केवल कहा, बल्कि उनकी अदालतों ने पाया कि वे चरित्रहीन हैं, फांसी लगा दी।
सुकरात को जहर दिया, क्योंकि अदालत ने तय किया कि वह चरित्रहीन है। अदालत ने जो जुर्म लगाए सुकरात पर, उनमें एक था कि न केवल वह खुद चरित्रहीन है, वह दूसरों को भी चरित्रहीनता के लिए उकसाता है। यही तो जुर्म मुझ पर भी लगता है। लेकिन जिन्होंने जुर्म लगाया था, वे कहां खो गए! उनका नाम भी किसी को याद नहीं। सुकरात का चरित्र रोज-रोज उज्ज्वल होता गया। जैसे-जैसे आदमी की समझ बढ़ी, वैसे-वैसे अनुभव में आया कि यह आदमी जो कह रहा था, यह समाज की धारणाओं के विपरीत था, लेकिन जीवन की आंतरिक-अवस्था के विपरीत नहीं था।
समाज चरित्रहीन है। इसलिए जब भी तुम्हारे बीच कोई चरित्रवान व्यक्ति पैदा होगा, समाज अड़चन अनुभव करता है। समाज को बेचैनी शुरू होती है। समाज ऐसा चरित्र चाहता है, जो समाज की चरित्रहीनता में व्याघात उत्पन्न न करे। ऐसा चरित्र चाहता है, जो बस ऊपर-ऊपर हो। जिससे कोई अड़चन जीवन की व्यवस्था में, ढांचे में न आए। गहरा चरित्र समाज नहीं चाहता। समाज चाहता है चरित्र की बात करो। समाज कहता है सत्य, अहिंसा, प्रेम की बात करो, उपदेश दो, लेकिन
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