SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो चूनर निष्काम कहां पर हो! मैं तो रंगरेज हूं। मुझे बिलकुल फिकर ही नहीं कि तुम्हारी गंदी है चदरिया कि नहीं है गंदी, रंग देता हूं। यह गेरुआ रंग! अब अगर रंगरेज भी फिकर करने लगे कि धोयी है कि नहीं धोयी है...कौन फिकर करे! यहां तो रंग तैयार रखा है, तुम आओ, डुबाया! यह तुम पीछे समझ लेना कि सफाई करनी कि नहीं करनी। तीसरा प्रश्नः भगवान, शासकीय सेवा में हूं। चार दिन के विश्राम में यहां आया था, बोधि-दिवस को। सिर पर हिमालय सा बोझ लिए बुद्धि के सहारे यहां पहुंचा था। प्याला पिया। हिमालय गल गया संताप का, हो गया शांत। भूल गया लौटना। किंतु हिसाब किया बुद्धि नेघर का क्या होगा? परिवार का क्या होगा? झट से बोल उठा हृदयः खो जा, गोता लगा जा प्रिय के सागर में! इस तरह जी रहा हूं, मन में बड़ा द्वंद्व है, कृपया मार्गदर्शन करें! ठी क किया। रुक गए तो अच्छा किया। ऐसे क्षण कभी-कभी जीवन में आते हैं, जब सागर करीब होता है और डुबकी लग सकती है। ऐसे क्षण मुश्किल से कभी आते हैं, जब तुम्हें सागर दिखायी पड़ता है और डुबकी लगाने की प्रगाढ़ आकांक्षा उठती है। ऐसे क्षणों में सब हिसाब-किताब छोड़ देना जरूरी है। लेकिन, अब डुबकी लग गयी, अब घर जा सकते हो। क्योंकि अगर सागर का मोह बन जाए, तो यह डुबकी न हुई, यह फिर नया संसार हुआ। मुझमें डूबो, लेकिन 260
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy