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________________ एस धम्मो सनंतनो शराब नहीं। आशा कहती है, कौन जाने इस बार वैसा न हो, आटा ही आटा हो। एक बार कांटा था, हजार बार कांटा था, लेकिन एक हजार एकवीं बार हो सकता है कांटा न हो। अब तक बहुत दुख पाया, इससे यह तो सिद्ध नहीं होता कि आगे भी दुख होगा। एक और प्रयास करके देख लें। बस, आशा ऐसे ही एक प्रयास के सहारे जीती है। तुम फिर-फिर वही भूलें करते हो। तुम फिर-फिर उसी चाक में भरमते हो और आशा तुम्हें भरमाए चली जाती है। __ बुद्ध कहते हैं सुख उस घटना को, जो शाश्वत और ब्रह्म के अनुभव से उपलब्ध होती है। __ और बल। बल, जब तुम अत्यंत निराकार हो जाते हो, तब तुम्हारे भीतर से बल प्रवाहित होता है। जब तुम बांस की पोंगरी बन जाते हो, तब तुम्हारे भीतर से अनंत की धारा प्रवाहित होने लगती है। तब तुम सिर्फ द्वार होते हो। बल तुम्हारा तो हो ही . नहीं सकता, क्योंकि अंश का क्या बल! खंड का क्या बल! अखंड का ही बल हो सकता है। बूंद का क्या बल! सागर का ही हो सकता है। जब बूंद अपने को सागर में खो देती है, विराट के साथ एक हो जाती है, तो बलवान होती है। बुद्ध कहते हैं, तुम जब तक अपने को पकड़े रहोगे, निर्बल रहोगे। जैसे ही छोड़ा, बलवान हुए। यह बल, हमारा साधारण पद, प्रतिष्ठा, तलवार, धन, तिजोड़ी का बल नहीं है। यह बल शून्य का बल है। मिटने से उपलब्ध होता है। जीसस ने कहा है, जो अपने को बचाएंगे, खो जाएंगे। जो अपने को खो देंगे, केवल वही बचते हैं। उसी बल की बात हो रही है। जिंदगी जिससे इबारत हो तो वो जीस्त कहां यूं तो कहने के तईं कहिए कि हां जीते हैं ऐसे कहे चले जाते हैं कि हां, जीते हैं। मगर जिंदगी, जिसको कहें जिंदगी, वह कहां है! वह कहीं दिखायी नहीं पड़ती। जिंदा होकर भी हम मरे-मरे से हैं। न बल है, न सुख है, न ब्राह्मणत्व है, न शाश्वत की कोई झलक है। सब तरफ से मौत ने घेरा है, इसे तुम जिंदगी कहे चले जाते हो? प्रतिपल गंवाए चले जाते हो और इसको तुम विकास कहे चले जाते हो? हर सुख दुख बनता जाता है, हर स्वर्ग की आशा नर्क में परिवर्तित होती जाती है, फिर भी तुम कहे चले जाते हो कि जिंदगी है यह। जिंदगी जिससे इबारत हो तो वो जीस्त कहां यूं तो कहने के तईं कहिए कि हां जीते हैं ऐसा किसको धोखा दे रहे हो? जिस दिन तुम्हें समझ में आ जाता है कि यह धोखा अपने को है, उसी दिन क्रांति की शुरुआत होती है, सूत्रपात होता है। और ध्यान रखना, जिस ऊर्जा से नर्क बनता है, उसी ऊर्जा से स्वर्ग भी बनता है। और जिस ऊर्जा से तुम्हारे जीवन में अंधकार आता है, उसी ऊर्जा से प्रकाश भी आता है। क्योंकि वे भिन्न नहीं हैं। सिर्फ तुम्हारे देखने का ढंग बदलने की बात है। 12
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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