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झुकने से उपलब्धि, झुकने में उपलब्ध
जहां घृणा करती है वास जहां शक्ति की अनबुझ प्यास जहां न मानव पर विश्वास उसी हृदय में, उसी हृदय में उसी हृदय में, वहीं, वहीं
जग की व्याकुलता का केंद्र
जहां से तुम्हारे भीतर अनबुझ प्यास उठती है शक्ति की और तुम दौड़ पड़ते हो धन पाने, पद पाने; वहीं से, उसी केंद्र से समझ के साथ जब यह दौड़ उठती है, तो तुम पद पाने नहीं, परमपद पाने चलते हो। तब तुम धन जो बाहर है उसे पाने नहीं, धन जो भीतर है उसे पाने चलते हो। तब तुम जिस जिंदगी का अंत आज नहीं कल कब्र में हो जाएगा, उस जिंदगी पर समय व्यय नहीं करते, तुम उस अमृत की खोज लग जाते हो जिसका कोई अंत नहीं है।
पर आदमी स्थगित किए चला जाता है। ऐसा भी नहीं है कि तुम्हें इन बातों का स्मरण न आता हो । नहीं, इतना नासमझ भी मैंने नहीं देखा कि जिसको इन बातों का स्मरण न आता हो। लेकिन तुम कहते हो, कल ।
बस कल कर लूंगा, था यही रोग मेरा
दिन गुजर गए वे हाय! क्या हाथ आया
हो, कल बात तो जंचती है। मेरे पास लोग आ जाते हैं, कहते हैं, बात जंचती है, अभी समय नहीं आया।
समय कब आएगा ? तुमने कुछ इंतजाम किया है ? कहीं ऐसा न हो कि मौत पहले आ जाए। समय पर तुम्हारा कोई बस है? तुम मौत को अटका सकोगे थोड़ी देर कि पहले मेरे समय को आ जाने दे, फिर तू आ जाना ?
अगर तुम मौत को न टाल पाओगे, तो कृपा करके कुछ और मत टालो । जिंदगी को तो तुम टाले चले जाते हो, मौत को तुम टाल न पाओगे। तुम किसे धोखा दे रहे हो ? लेकिन कल इतना करीब लगता है कि लगा अब आया, अब आया - आता कभी नहीं। कल इतना पास मालूम होता है कि सोए कि कल हुआ। लेकिन कभी हुआ? आज तक हुआ? जो आज है, वह भी कल कल ही था। कल छोड़ा था आज के लिए, आज छोड़ोगे कल के लिए, ऐसा छोड़ते ही चले जाओगे। क्रांति इस तरह की आत्मवंचना से मरती है।
'दुःशील और असमाहित होकर सौ साल जीने की अपेक्षा शीलवंत और ध्यानी का एक दिन का जीना भी श्रेष्ठ है ।'
दुराचरण में असमाहित होकर — और दुराचरण में असमाहित कोई होगा ही । लोग मेरे पास आते हैं, वे पूछते हैं, मन में बड़ी अशांति है, कोई उपाय ? मैं उनसे पूछता हूं, पहले फिक्र करो अशांति है क्यों ? क्योंकि अशांति कारण नहीं है, कार्य
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