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एस धम्मो सनंतनो
अहंकार कहेगा, क्या नामर्दगी करते हो, लड़ो! धार से उलटे बहो! मजा लो लड़ने का! धार से हारे जा रहे हो। विजय करनी है! संघर्ष करना है! जूझना है!
डायलान थामस का एक गीत है-अपने पिता की मृत्यु पर लिखा है--उसमें लिखा है, बिना जूझे मत मरो। जूझो! लड़ो! यह जो अंधेरी रात आ रही है, बिना जूझे मत समर्पण करो। लड़ो! ___ पिता मर रहा है। यह आधुनिक आदमी का दृष्टिकोण है, या कहो पाश्चात्य दृष्टिकोण है, वही आधुनिक आदमी का दृष्टिकोण हो गया है : लड़ो-मौत से भी! ऐसे ही मत समर्पण करो! अंधेरी रात आती है तो जूझो, ऐसे ही मत छोड़ दो। आखिरी टक्कर दो! और यही कर रहा है आदमी। जीवनभर लड़ता है, मरने लगता है तो भी लड़ता है। जीवन भी कुरूप हो जाता है, मृत्यु भी कुरूप हो जाती है। ____ मैं तुमसे कहता हूं, लड़ो मत, बहो। लड़कर तुम हारोगे। बहो-तुम्हारी जीत सुनिश्चित है। बहने वाले को कभी कोई हराया है? यही तो लाओत्से और बुद्धपुरुषों के वचन हैं-बहो।
तुम लड़ना चाहते हो, तुम धर्म के नाम पर भी लड़ना चाहते हो। तुमने धर्म के नाम पर जिनकी पूजा की अब तक, अगर गौर से देखोगे तो लड़ने वालों की पूजा की है, बहने वालों की नहीं। क्योंकि वहां भी अहंकार को ही तुम सिंहासन पर रखते हो। कोई उपवास कर रहा है, तुम कहते हो, अहा! महासंत का दर्शन हुआ। कोई धूप में तप रहा है, तुम झुके, फिर तुमसे नहीं रुका जाता। फिर चरण छुए, तुमसे नहीं रुका जाता। धूप में तप रहा है! यही तुम भी चाहते हो कि तुम भी कर सकते। तुम जरा कमजोर हो, लेकिन सोचते हो, कभी न कभी समय आएगा जब तुम भी टक्कर दोगे अस्तित्व को।
बहते आदमी के तुम चरण छूकर प्रणाम करोगे? धूप से हटकर वृक्ष की छाया में शांति से बैठा हो, उसे तुम नमस्कार करोगे? कांटों पर सोया आदमी नमस्कार का पात्र हो जाता मालूम पड़ता है। यही तुम्हारी भी आकांक्षा है। तुम कहते हो, तुम जरा आगे हो, तुम हमसे जरा आगे पहुंच गए, तुमने वह कर लिया जो हम करना चाहते थे-कम से कम हमारा नमस्कार स्वीकार करो। हम भी यही आकांक्षा लिए जीते हैं। टक्कर देनी है! ___टक्कर से अहंकार बढ़ता है। मैं हूं, अगर लड़ता हूं। अगर नहीं लड़ता हूं, मैं गया। और मैं तुमसे कहता हूं, धर्म का आधार सूत्र है : समर्पण।
इसलिए तुमसे में कहता हूं, कोई कारण नहीं है। तुम्हें में बड़ी अड़चन में डाल रहा हूं। बड़ा सुगम होता, तुम्हें मैं कह देता, यह रहा कारण, यह रहा नक्शा, यह है पहुंचने का रास्ता-लड़ो। व्रत, उपवास, नियम! तुम कहते, बिलकुल ठीक! चाहे तुम लड़ते, न लड़ते, नक्शा सम्हालकर छाती से रख लेते-कभी जब आएगा अवसर, लड़ लेंगे।
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