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आत्म-स्वीकार से तत्क्षण क्रांति
जब तक श्यामा के मौन-महल का स्वप्न-द्वार खटकाए आ राजा दिन के कोलाहल का तब तक उठ गागर में उंडेल लो गंगाजल
आंगन-छाए इस बिना बुलाए बादल का है बड़ा निठुर निर्दयी समय का सौदागर रखता है नहीं उधार फूल मुट्ठीभर भी पुरवाई ऐसे फिर न झूमकर गाएगी हरना है तो तुम दाह जलन की अभी हरो यह समय दुबारा लौट नहीं आएगा
भरना है तो तुम मांग मिलन की अभी भरो अगर विवाह रचाना हो तो अभी। प्रेम करना हो, अभी। गीत गाना हो, अभी। नाचना हो, अभी। प्रार्थना, पूजा, अभी। अगर जीना हो तो अभी। मरना हो तो कल भी हो सकता है। मरने को कल पर टाला जा सकता है। कोई अभी मरता है? लोग सभी कल मरते हैं। अभी तो जीना है। अभी तो जीवन है। ___जब मैं तुमसे कहता हूं, अकारण जीयो, तो मैं कहता हूं, लक्ष्य मत बनाओ। क्योंकि लक्ष्य बनाया कि तुमने तैरना शुरू किया। तैरे कि तुम धार से लड़े। जब मैं कहता हूं, अकारण जीयो, तो मैं कहता हूं, बहो। धार से लड़ो मत। धार को दुश्मन मत बनाओ, दोस्ती साधो। धार पर सवार हो जाओ। धार के साथ बहो। धार जहां ले जाए, चलो। अपना कोई अलग से व्यक्तिगत लक्ष्य निर्धारित मत करो। नियति बूंद की क्या! होगी सागर की कुछ, बूंद को प्रयोजन क्या! और मैं तुमसे कहता हूं, सागर की भी नहीं, क्योंकि सागर भी बूंदों का जोड़ है। जब बूंद की ही नहीं, तो सागर की भी क्या होगी! सागर का गर्जन-तर्जन सुनो-अभी है। तुम इस गहरी अभी को पहचानो। यह क्षण जो अभी मौजूद है, इसमें तुम डुबकी लो।
तब तक उठ गागर में उंडेल लो गंगाजल
आंगन-छाए इस बिना बुलाए बादल का यह तुमने बुलाया भी न था, बिना बुलाए आया है। यह जीवन तुमने मांगा भी न था, बिना मांगा मिला है। यह प्रसाद है। इसकी तुमने कोई कमाई भी न की थी; यह तुम्हें यूं ही मिला है। धन्यवाद दो! कारण पूछते हो? सौभाग्य अनुभव करो! और तुम पर कोई कारण का बंधन नहीं है।
लेकिन अहंकार कारण चाहता है। अहंकार कहता है, अगर कारण नहीं है, तो फिर मैं कैसे होऊंगा? मैं हो ही सकता है कारण के आधार पर। अहंकार कहता है, यह न चलेगा, तैरूंगा। अगर बहंगा तो मैं तो गया।
तुम जरा सोचो! नदी की धार में बह चले, जहां धार ले चली वहीं चले; धार डुबाए तो ठीक, धार बचाए तो ठीक-तो फिर तुम्हारा अहंकार कहां रहेगा?
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