________________
एस धम्मो सनंतनो
एक-एक शब्द बहुमूल्य है। श्रद्धा से बुद्ध का अर्थ है : संदेहशून्य चित्त की अवस्था। वैसा मत सोचना जैसा तुमने श्रद्धा से सोचा है। जब बुद्ध कहते हैं श्रद्धा, तो उनका यह मतलब नहीं है : किसी पर श्रद्धा। उनका यह मतलब नहीं है : परमात्मा पर श्रद्धा, या स्वयं बुद्ध पर श्रद्धा। नहीं, उनका मतलब केवल इतना है, संदेहशून्य अवस्था, जहां कोई संदेह नहीं। अगर इसको तुम ठीक से समझो तो इसका अर्थ होगा : अपने पर श्रद्धा, आत्मश्रद्धा।
शील! इस आत्मश्रद्धा की अवस्था से, इस अपने पर भरोसे की अवस्था से जो आचरण निकले, वही शील। लज्जा की प्रतीति से जो आचरण निकले, वही शील। ____वीर्य! और इस शील पर अगर तुमने जीवन को ढाला-श्रद्धा, आत्मश्रद्धा, उससे उठा हुआ शील, आचरण-अगर इस आचरण में तुमने जीवन को ढाला तो तुम अपने को सदा ऊर्जस्वी पाओगे। तुम पाओगे तुम्हारे ऊपर अनंत ऊर्जा बरस रही है, कभी कम नहीं होती।
कुशील व्यक्ति सदा ही हारा हुआ, थका हुआ पाता है। सभी वासनाएं थकाती हैं, विचलित करती हैं, उजाड़ जाती हैं। तुम कभी भरे-पूरे नहीं हो पाते, तुम सदा खाली-खाली, रिक्त-रिक्त रहते हो, जैसे कि पात्र में कई छेद हों। कुएं से पानी भी भरते हो तो शोरगुल बहुत मचता है, लेकिन जब पात्र लौटता है कुएं से तो खाली का खाली आ जाता है। पानी भरता है, लेकिन भरा आ नहीं पाता।
जिस व्यक्ति के जीवन में व्यर्थ, अकुशल, न करने योग्य काम समाप्त हो गए हैं: जो वही करता है जो करने योग्य है, होशपूर्वक करता है जो अपने कर्म में जागरूक है, उसके जीवन में वीर्य उत्पन्न होता है, ऊर्जा उत्पन्न होती है। वह महा शक्तिशाली हो जाता है। उसके पास इतना होता है कि बांट सकता है। उसके पात्र से शक्ति बहने लगती है, दूसरों पर बरसने लगती है। और ऐसी ही ऊर्जा की दशा में समाधि संभव है। थके-थके, हारे-हारे, टूटे-टूटे, समाधि संभव नहीं है। ____ फूल वृक्ष में आते हैं तभी जब वृक्ष के पास जरूरत से ज्यादा ऊर्जा होती है। तुम्हारे जीवन में भी मेधा तभी प्रगट होती है, जब तुम्हारे पास जरूरत से ज्यादा ऊर्जा होती है। मेधा फूल की भांति है, और समाधि तो परम फूल है, आखिरी फूल है। ____ अगर बुद्धपुरुष तुम्हारी कामवासना, तुम्हारे क्रोध, तुम्हारे लोभ-मोह के विपरीत हैं, तो सिर्फ इसीलिए कि उनके माध्यम से तुम्हारी शक्ति क्षीण होती है, परम फूल नहीं खिल पाता। तुम दीन-दरिद्र रह जाते हो। भिक्षा-पात्र ही तुम्हारी आत्मा बन पाती है, कमल नहीं बन पाती।
समाधि, धर्मविनिश्चय! और जो समाधि को उपलब्ध हुआ, उसे धर्म का साक्षात्कार होता है। वही निश्चित कर पाता है क्या धर्म है। एस धम्मो सनंतनो उसी का साक्षात्कार है।
विद्या! शास्त्रों से नहीं मिलती विद्या। जिसने उस सनातन नियम को जान लिया,
238