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________________ एस धम्मो सनंतनो मूल की तरफ झुकना, फूल की तरफ नहीं। परमात्मा तो आखिरी फूल है। ___ अगर हम जीवन को गौर से देखें तो वृक्ष जीवन की पहली झलक है, परमात्मा आखिरी। वृक्ष में पहली बार जीवन गतिमान हुआ है। परमात्मा अंतिम आरोहण है। तुम अंतिम की तरफ मत झुकना, तुम प्रथम की तरफ झुकना। क्योंकि यात्रा पहले ही कदम से होती है, अंतिम कदम से नहीं। मंजिल भूलो, उसकी कोई फिकर नहीं; पहले कदम को सम्हाल लो। __बड़े सौंदर्य का प्रतीक है वृक्ष। शांति का, मौन का, ताजगी का, नयेपन काअतीत के बोझ को नहीं ढोता; प्रतिपल नया है-छाया का, शीतलता का, विश्राम का; देता चला जाता है—दान का; तुम मारो पत्थर भी, तो भी फल ही दे देता है। इसलिए बुद्ध ने बड़ी बेबूझ सी बात कही, ‘जो अभिवादनशील है और वृक्षों की सेवा करने वाला है, उसकी चार बातें बढ़ती हैं।' ये चार बातें समझने जैसी हैं। 'आयु, वर्ण, सुख और बल।' कोई बड़ी बातें नहीं मालूम होतीं। यह भी कोई बात हुई, बुद्ध के मुंह पर शोभा भी नहीं देती। आयु बढ़ाकर भी क्या होगा? वर्ण बढ़ने से क्या होगा? शूद्र न हुए ब्राह्मण हुए, क्या फर्क पड़ेगा? सुख, सुख तो सब सांसारिक है। और बल, शक्ति, वह तो अहंकार का ही परिपोषण करेगी। नहीं, बुद्ध का अर्थ समझना होगा। आगे के सूत्र साफ हो जाएंगे, तब खयाल में आ जाएगा। बुद्ध कहते हैं, आयु का संबंध समय की लंबाई से नहीं, गहराई से है। तुम सौ साल जीओ, यह सवाल नहीं है। तुम एक क्षण ध्यान में जी लो, बस। आयु बढ़ी। अमृत का स्वाद लगा। सौ साल भी जीओ, तो स्वप्न में ही जीते हो। वह जीना वास्तविक आयु नहीं है, आयु का भ्रम है। जैसे कोई रात सपना देखे और सपने में हजार साल जीए, सुबह जागकर पाए, हाथ खाली के खाली। क्या सुबह कहेगा, रात बड़ी लंबी आयु पायी? स्वप्न में गंवायी, लंबी हो कि छोटी, क्या फर्क पड़ता है? आयु को बुद्ध कहते हैं, ध्यानपूर्वक एक क्षण भी उपलब्ध हो जाए, तो शाश्वत है। ध्यान से समय के पार जाने का द्वार खुलता है। जिसे हम आयु कहते हैं, वह समय की लंबाई है। जिसे बुद्ध आयु कहते हैं, वह शाश्वत में छलांग है। वहां कोई समय नहीं। समय के नीचे उतर जाना है। समय से गहरे उतर जाना है। जैसे सागर की छाती पर लहरें हैं-तुम डुबकी लगा लो, लहरों के नीचे उतर गए। ऐसी समय की लहरें हैं सनातन, शाश्वत की छाती पर, तुम डुबकी लगा लो, तुम गहरे उतर गए। वहां है असली आयु। वहां बुद्ध पुरुष जीते हैं। ... वर्ण से बुद्ध का अर्थ साधारण हिंदू वर्ण-व्यवस्था से नहीं है। क्योंकि बुद्ध ने कहा है, ब्राह्मण वही, जो ब्रह्म को जान ले। शूद्र वही, जो शरीर को ही सब मानकर 10
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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