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________________ झुकने से उपलब्धि, झुकने में उपलब्धि वही है, जिसने जान लिया कि मैं नहीं हूं। शून्य के प्रति शरण जाते हैं। मैं सिर्फ बहाना हं। मैं नहीं रहूंगा तब भी यह पाठ जारी रहेगा। मेरे होने, न होने से इसमें कोई फर्क न पड़ेगा। मैं था, मैं नहीं था, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। ये बुद्ध पुरुष की शरण नहीं जाते, बुद्धत्व की शरण जाते हैं। बोधि की शरण जाते हैं। होश की शरण जाते हैं। जागरण की शरण जाते हैं। स्मृति की शरण जाते हैं। मैं तो बहाना हूं। जैसे सुगंध आयी हो और तुम्हें कठिन हो जाए, कहां अभिवादन करो, तो फूल को अभिवादन कर दो। बाकी सुगंध तो अब मुक्त हो गयी है। फूल चला भी जाए तो भी सुगंध इस आकाश में व्याप्त रहेगी। बुद्ध आते हैं, जाते हैं, बुद्धों की सुवास तो सदा बनी रहती है। जिनके पास देखने की क्षमता होती है, अनुभव करने की क्षमता होती है, उनके लिए बुद्ध कभी मिटते नहीं। और जिनकी आंखें अंधी हैं, कान बहरे हैं, उनके सामने भी साकार बुद्ध की प्रतिमा खड़ी होती है, तो भी उन्हें कुछ दिखायी पड़ता नहीं। 'जो अभिवादनशील है, जो सदा वृक्षों की सेवा करने वाला है।' वृक्षों की! कहां यह आदमी परमात्मा से मुक्त होने की बात करता है, कहां कहता है वृक्षों की सेवा! वृक्ष बुद्ध के लिए प्रतीक है-जीवन का, विकास का, हरियालेपन का, ताजगी का, गति का। . बुद्ध के मरने के पांच सौ वर्ष तक बुद्ध की कोई प्रतिमा नहीं बनायी गयी। क्योंकि बुद्ध ने कहा, जरूरत क्या? मैं जिस वृक्ष के नीचे ज्ञान को उपलब्ध हुआ था, उसी की पूजा कर लेना। इसलिए बोधिवृक्ष की पूजा चली। पांच सौ वर्षों तक बुद्ध के मंदिर बने, उनमें सिर्फ बोधिवृक्ष का प्रतीक बना देते थे। काफी था। वृक्ष जीवन का प्रतीक है। बुद्ध ने कहा, बजाय परमात्मा के चरणों में झुकने के...क्योंकि परमात्मा के चरणों में झुकना बड़ा आसान है, इतनी महिमापूर्ण घटना के चरणों में झुककर तुम भी महिमावान हो जाते हो। तुमने खयाल किया, परमात्मा के चरणों में झुकने में भी हो सकता है अहंकार मजा लेता हो। हम कोई साधारण किसी के चरणों में थोड़े ही झुक रहे हैं, परमात्मा के चरणों में झुक रहे हैं! ये राम के चरण, ये कृष्ण के चरण! और हम झुकने वाले, हम भी कुछ छोटे न रहे! वृक्षों के चरणों में झुकना? यह बात ही कुछ बेबूझ हो जाती है। बुद्ध यह कह रहे हैं, झुकना ही हो तो छोटों के चरणों में झुकना। बुद्ध यह कह रहे हैं, झुकना ही हो तो ऐसे चरणों में झुकना कि कहीं झुकने में से ही अहंकार न निकलने लगे। अब वृक्ष के चरणों में झुककर क्या अहंकार निकलेगा? लोग हंसें भला! लोग कहें, क्या कर रहे हो? मखौल भला उड़ायी जाए, लेकिन कहां सम्हालोगे अहंकार को! अहंकार तो सहारे चाहता है। अहंकार आकाश की तरफ देखता है। वृक्षों के चरणों में झुकने का अर्थ है, पृथ्वी के चरणों में झुकना। वहां, जहां वृक्ष की जड़ें हैं।
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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