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एस धम्मो सनंतनो
तुम वही न रहे जो क्षणभर पहले थे। मौजूदगी ने तुम्हें झूठा कर दिया।
बुद्ध कहते हैं, परमात्मा की मौजूदगी तुम्हें सच्चा ही न होने देगी। क्योंकि उसको तो चाबी के छेद से झांकने की जरूरत नहीं, वह तो सभी जगह मौजूद है। तुम नहा रहे हो, वह खड़े हैं। तुम कुछ भी करो, उनसे तुम बचकर न जा सकोगे। वह तुम्हें स्थान न देंगे। वह तुम्हें चारों तरफ से घेर लेंगे। तुम बंधे-बंधे हो जाओगे।
बुद्ध ने कहा है, परमात्मा से मुक्त हो जाना मोक्ष का पहला कदम है। तभी तुम्हारी सहजता प्रगट होगी, तभी तुम सहजस्फूर्त होओगे। कोई नहीं है, तुम ही हो–निर्णायक, नियंता, मालिक।
इसे तुम स्वच्छंदता मत समझ लेना। क्योंकि इसी के साथ आता है परम दायित्व। क्योंकि फिर तुम्हारे ऊपर जो भी बीत रहा है, उसके जिम्मेवार भी तुम्ही हो। दुख पाया, तुम्हीं ने बोया होगा। नर्क आया, तुमने ही निमंत्रण भेजा होगा। अंधेरे ने घेर लिया है, तुमने ही रचा होगा, तुमने ही सजाया होगा। मांगा होगा किसी अज्ञान के क्षण में, आ गया है अब। मांगने और आने में समय का फासला रहा होगा, लेकिन बिना तुम्हारे मांगे कुछ भी नहीं आता। फसल तुम वही काटते हो, जिसके तुम बीज बोते हो।
स्वच्छंदता नहीं है, स्वतंत्रता है। लेकिन स्वतंत्रता परम दायित्व है। अब तुम किसी और पर बोझ न रख सकोगे। भगवान को मानने वाला तो बोझ रख सकता है। वह कहता है, तुने दिया। तूने ऐसा करवाया, हम क्या करें? वह तो अपनी गठरी परमात्मा के कंधों पर रखने की उसे सुविधा है। बुद्ध के पास यह उपाय नहीं। गठरी तुम्हारी है, तो कंधा भी तुम्हारा है। उतारनी है, तो जिस तरह बनायी है, उसी तरह उतारनी होगी। जिस तरह बीज बोए, उसी तरह काटने भी होंगे। एक-एक बीज को दग्ध करना होगा, तभी तुम्हारे भीतर मुक्ति का प्रकाश होगा। ___ 'जो अभिवादनशील है।' __ इसलिए बुद्ध कहते हैं, अभिवादनयोग्य तो कोई भी नहीं, लेकिन फिर भी अभिवादनशील तो रहना। कठिन होगा, लेकिन अगर समझोगे...बारीक है बहुत, फूल जैसा नहीं, सुगंध जैसा है। फूल को तो पकड़ भी लो, मुट्ठी में बांध भी लो। परमात्मा को मानने वाले की बातें फूल जैसी हैं। सुंदर। मुट्ठी में बांधी जा सकती हैं। बुद्ध की बातें फूल से मुक्त हो गयी सुवास जैसी हैं। अब तुम मुट्ठी भी न बांध सकोगे। अब बात बड़ी बारीक हो गयी। अब सीमाएं हट गयीं सब, असीम हो गयी।
'अभिवादनशील है जो।'
उसे बुद्ध चरित्र का पहला चरण मानते हैं। बुद्ध के पास जो जाता दीक्षा लेने, कहता-बुद्धं शरणं गच्छामि। संघं शरणं गच्छामि। धम्मं शरणं गच्छामि। किसी ने बुद्ध को पूछा कि आप तो कहते हैं अभिवादनयोग्य कोई भी नहीं, फिर कौन के प्रति लोग आकर कहते हैं-बुद्ध के शरण जाता हूं? तो बुद्ध ने कहा, बुद्ध का अर्थ ही