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________________ झुकने से उपलब्धि, झुकने में उपलब्धि प्रार्थना खंडित हो जाएगी। बुद्ध एक कदम और आगे ले जाते हैं। वे कहते हैं, प्रार्थना भी करना, मांगना भी मत, और कोई है भी नहीं जिससे तुम मांग सको। इसलिए मांगोगे, तो तुम कोरे आकाश में अपने से ही बातें कर रहे हो। इसलिए मांगना सिर्फ तुम्हारे अज्ञान की सूचना होगी। मगर अभिवादन, झुकने की कला, विनम्रता, समर्पित होने का भाव, ये बहुमूल्य हैं। बुद्ध ने जोर परमात्मा से हटा दिया, तुम पर ला दिया। अभिवादन तुम्हें करना है, कृतज्ञता ज्ञापन तुम्हें करना है, अनुग्रह का भाव तुम्हें करना है, कोई वहां है स्वीकार करने वाला या नहीं; नमस्कार तुम्हें करनी है, कोई वहां है नमन योग्य या नहीं, इस व्यर्थ चिंता में मत पड़ो। क्योंकि नमस्कार ही वरदान है। तुम झुके, इसमें ही पा लिया। __ कोई देता नहीं है, झुकने से मिलता है। वहां कोई दाता नहीं बैठा है कि तुम झुकोगे-ज्यादा झुकोगे तो ज्यादा देगा, कम झुकोगे तो कम देगा, दिन-रात झुकते ही रहोगे तो देता ही चला जाएगा। जो न झुकेंगे उनको सजा देगा, जो विपरीत चलेंगे उनको नर्क में डाल देगा, ऐसा वहां कोई भी नहीं है। तुम्हारे झुकने से ही मिलता है। झुकने में ही मिलता है। झुकना ही मिलना है। इसलिए बात बिलकुल आंतरिक है, तुम्हारी है, आत्मगत है। अकड़े, खोया। झुके, पाया। अकड़ से खोया, झुकने से पाया। न किसी ने छीना, न किसी ने दिया। परमात्मा को ऐसा बुद्ध ने हटा दिया। मंदिर नहीं मिटाया, परमात्मा को हटा दिया। इसे थोड़ा समझो। मंदिर को तो बनाए रखा। परमात्मा की मौजूदगी भी बाधा थी। मंदिर पूरा खाली न हो पाता था। परमात्मा की मौजूदगी के कारण, तुम झुकते भी थे तो स्वार्थ आ जाता था। परमात्मा की मौजूदगी के कारण, तुम जितना नहीं झुकना चाहते थे-कभी-कभी अतिशय कर जाते थे-उतना भी झुक जाते थे। धोखा आ जाता था। परमात्मा की मौजूदगी तुम्हें बिलकुल नितांत अकेला न होने देती थी। तुम पूरे-पूरे स्वयं न हो पाते थे। ___ कभी तुमने खयाल किया, दूसरे की मौजूदगी कभी अकेला नहीं होने देती। तुम अपने स्नानगृह में स्नान कर रहे हो, अचानक तुम्हें खयाल आ जाए कि कोई चाबी के छेद से झांक रहा है, सब बदल गया। एक क्षण में सब बदल गया। अब तुम वही नहीं हो जो क्षणभर पहले थे। क्षणभर पहले दर्पण के सामने मुंह बिचका रहे थे, बचपन आया था, लौट गए थे पीछे, खुश थे, गीत गुनगुना रहे थे। लाख कहते हैं लोग तुमसे, गीत गुनगुनाओ; तुम कहते हो, गला नहीं; स्नानगृह में भूल जाते हो। सभी गुनगुनाने लगते हैं। स्नानगृह में न गुनगुनाने वाला आदमी खोजना मुश्किल है। सभी वहां गायक हो जाते हैं। तुम ऐसे काम कर लेते हो कि अगर तुम भी अपने को पकड़ लो करते हुए, तो शरमा जाओ। मगर कोई झांकता है चाबी के छेद से, सब बदल गया।
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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