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एस धम्मो सनंतनो
दशा खो जाती है।
दो ही तरह के लोग हैं— कुछ अग्रसोची हैं, कुछ पश्चात्ताप करने वाले हैं। दोनों के मध्य में वर्तमान का क्षण है, वहां होना असली कला है, वहां होना धर्म है। 'पापकर्म करते हुए वह मूढ़जन उसे नहीं बूझता है ।'
हम वहां हैं जहां से हमको भी
कुछ हमारी खबर नहीं आती
तो
और जब तुम अपने कर्म के प्रति ही जागरूक नहीं हो तो तुम कर्ता के प्रति कैसे जागरूक होओगे ? कर्ता तो बहुत गहरे में है। कर्म तो बहुत बाहर है, साफ है । कर्ता बहुत अंधेरे में छिपा है । अगर कर्म के प्रति जागे नहीं, तो कर्ता के प्रति कैसे जागोगे ? और अगर कर्ता के प्रति न जागे, तो साक्षी के प्रति कैसे जागोगे ? साक्षी . तो बहुत दूर है फिर तुमसे ।
हम वहां हैं जहां से हमको भी
कुछ हमारी खबर नहीं आती
उस साक्षी से तुम कितने दूर पड़ गए हो। हजारों-हजारों मीलों का फासला हो गया है । लौटो घर की तरफ ! चलो अंतर्यात्रा पर !
यात्रा के सूत्र हैं: कर्म के प्रति जागो। पहला सूत्र । जब कर्म के प्रति होश सध जाए, तो फिर जागो कर्ता के प्रति । होश के दीए को जरा भीतर मोड़ो । जब कर्ता के प्रति दीया साफ-साफ रोशनी देने लगे, तो अब उसके प्रति जागो जो जागा हुआ है - साक्षी के प्रति । अब जागरण के प्रति जागो । अब चैतन्य के प्रति जागो। वही तुम्हें परमात्मा तक ले चलेगा।
ऐसा समझो, साधारण आदमी सोया हुआ है। साधक संसार के प्रति जागता है, कर्म के प्रति जागता है। अभी भी बाहर है, लेकिन अब जागा हुआ बाहर है। साधारण आदमी सोया हुआ बाहर है। धर्म की यात्रा पर चल पड़ा व्यक्ति बाहर है, लेकिन जागा हुआ बाहर है।
फिर जागने की इसी प्रक्रिया को अपनी तरफ मोड़ता है। एक दफे जागने की कला आ गयी, कर्म के प्रति, उसी को आदमी कर्ता की तरफ मोड़ देता है । हाथ में रोशनी हो, तो कितनी देर लगती है अपने चेहरे की तरफ मोड़ देने में ! बैटरी हाथ में है, मत देखो दरख्त, मत देखो मकान, मोड़ दो अपने चेहरे की तरफ ! हाथ में बैटरी होनी चाहिए, रोशनी होनी चाहिए। फिर अपना चेहरा दिखायी पड़ने लगा ।
साधारण व्यक्ति संसार में सोया हुआ है; साधक संसार में जागा हुआ है; सिद्ध भीतर की तरफ मुड़ गया, अंतर्मुखी हो गया, अपने प्रति जागा हुआ है। अब बाहर नहीं है, अब भीतर है और जागा हुआ है । और महासिद्ध, जिसको बुद्ध ने महापरिनिर्वाण कहा है, वह जागने के प्रति भी जाग गया। अब न बाहर है न भीतर, बाहर-भीतर का फासला भी गया । जागरण की प्रक्रिया दोनों के पार है, अतिक्रमण
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