SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अशांति की समझ ही शांति अब तो समय जा चुका। अब तो तीर छूट चुका। छूटे तीर वापस नहीं लौटते। अब तुम्हारे हाथ में नहीं है, जो बात हो गयी हो गयी। ___ तो कुछ लोग नाटक के बाद रिहर्सल करते हैं और कुछ लोग नाटक के पहले वर्षों तक रिहर्सल करते हैं। वे इतना रिहर्सल कर लेते हैं कि जब नाटक की घड़ी आती है तब वे करीब-करीब उधार हो गए होते हैं। जैसे तुमने कोई बात बिलकुल तय कर ली। तुम इंटरव्यू देने गए। दफ्तर में नौकरी चाहिए थी। स्वभावतः तुम हजार तरह से सोचते हो, क्या पूछेगे, हम क्या उत्तर देंगे। तुम उत्तर को बिलकुल मजबूत कर लेते हो-बार-बार दोहरा-दोहराकर, दोहरा-दोहराकर, जैसा स्कूल में विद्यार्थी परीक्षा देने जाता है तो बिलकुल रट लेता है, कंठस्थ कर लेता है। मैं बहुत दिन तक शिक्षक रहा, तो मैं चकित हुआ जानकर कि जो प्रश्न पूछे नहीं जाते उनके विद्यार्थी उत्तर देते हैं। ये उत्तर कहां से आते होंगे? मैंने उन विद्यार्थियों को बुलाया कि तुम करते क्या हो! यह तो प्रश्न पूछा ही नहीं गया है। जब मैंने उन्हें समझाया कि यह तो प्रश्न ही नहीं, तब उनकी अकल में आया। उन्होंने कहा, अरे! हम तो कुछ और समझे। हमने तो जो प्रश्न तैयार किया था वही पढ़ लिया। अक्सर तुम वही पढ़ लेते हो जो तैयार है। जो उत्तर तुम तैयार कर लाए हो, वही तुम सोचते हो पूछा गया है। तुम अपने उत्तर से इतने भरे हो कि जगह कहां कि तुम प्रश्न को सुन लो। पूछा कुछ जाता है, लेकिन जब तुम्हें पूछा जा रहा है, तब अगर तुम मौजूद होओ, तो तुम सुन सकोगे उसे। तुम कुछ और सुनकर लौट आते हो। ___अक्सर मेरे पास लोग आ जाते हैं, वे कहते हैं, आपने कल ऐसा कहा। मुझे भी चौंका देते हैं। कल मैंने कभी कहा नहीं। उन्होंने सुना, यह बात पक्की है; अन्यथा वे लाते कैसे। तो अब सवाल यह है कि जो उन्होंने सुना वह जरूरी है कि मैंने कहा? जरूरी नहीं है। मेरे अनुभव से यह मुझे समझ में आया, तुम वही सुनते हो जो तुम सुनना चाहते हो। तुम वही सुन लेते हो जिसको सुनने के लिए तुम तैयार हो। जिसके लिए तुम तैयार नहीं हो वह तुमसे छूट जाता है, तुम चुनाव कर लेते हो। फिर तुम अपना रंग दे देते हो। फिर जब तुम मेरे पास आते हो, तुम कहते हो, आपने कहा था। मैंने कहा ही नहीं है। मैंने जो कहा था उसे सुनने को तो तुम्हें बिलकुल चुप होना पड़ेगा। तुम्हारे भीतर कुछ भी सरकते हुए विचार न रह जाएं; अन्यथा वह विचार मिश्रित हो जाएंगे। तुम जो भी सुनते हो, वह मेरी कही बातों की और तुम्हारी सोची बातों की खिचड़ी है। उस खिचड़ी से जीवन में कुछ क्रांति घटित नहीं हो सकती, तुम और उलझ जाओगे। सुनने का ढंग है : तुम जो भी जानते हो उसे किनारे रख दो। तुम ऐसे सुनो जैसे तुम कुछ भी नहीं जानते हो। तो धोखा न होगा। तो कुछ हैं जो जीवन के पहले रिहर्सल करते रहते हैं; नाटक का जब दिन आता है तब चूक जाते हैं। रिहर्सल इतना मजबूत हो जाता है कि उनकी तत्क्षण-विवेक की 223
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy