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________________ एस धम्मो सनंतनो होश इस सारी ऊर्जा को समा लेता है। ऐसा समझो कि बेहोशी में झरने नीचे की तरफ बहते हैं, होश में ऊपर की तरफ बहने लगते हैं । काम भी नीचे ले जाता है, क्रोध भी नीचे ले जाता है, लोभ भी नीचे ले जाता है। तुम काम की सीढ़ी से नीचे गए, क्या फर्क पड़ता है ! कि लोभ की सीढ़ी से नीचे गए, क्या फर्क पड़ता है ! तुम क्रोध की सीढ़ी से नीचे गए, क्या फर्क पड़ता है ! सीढ़ियां अलग-अलग हों, नीचे जाना तो हो ही रहा है। ऊपर ले जाता है होश। जैसे-जैसे तुम होश से भरते हो, तुम्हारी ऊर्जा ऊर्ध्वगमन करती है, तुम ऊर्ध्वरेतस होते हो। और उस ऊर्ध्वगमन में ही सारी ऊर्जा परमात्मा की तरफ, सत्य की तरफ, निर्वाण की तरफ यात्रा करती है। . उस यात्रा के बाद ही तुम पाते हो : न क्रोध पकड़ता है, न लोभ पकड़ता है, न मोह पकड़ता है, न काम पकड़ता है। नहीं कि तुमने त्यागा। अब तुम इतनी बड़ी यात्रा पर जा रहे हो कि उन क्षुद्रताओं में जाए कौन ! अब तुम्हारे जीवन में इतने हीरे बरस रहे हैं, कंकड़-पत्थर कौन बीने ! अब ऐसे फूल खिले, ऐसे कमल खिले हैं कि घास-पात को कौन इकट्ठा करे ! 'पापकर्म करते हुए वह मूढ़जन उसे नहीं बूझता ।' बूझना शब्द भी बड़ा सोचने जैसा है। बालो न बुज्झति। बूझने का अर्थ सोचना नहीं है। क्योंकि सोचना तो हमेशा जो बीत गयी बात उसका होता है। सोच तो हमेशा पीछे होता है। बूझने का अर्थ है: निरीक्षण | बूझने का अर्थ है : अवलोकन | तुम जिसे सोच-विचार कहते हो, वह तो ऐसा है - जब फूल खिला तब तो देखा न, जब वह मुरझा गया और गिर गया तब तुम देखने आए। जब वसंत था तब तो आंख न खोली, जब पतझर आ गया तब तुमने बड़ी बुद्धिमानी दिखायी, आंख खोलकर सोचने लगे, वसंत क्या है ? बूझने का अर्थ है : जो है उसका अवलोकन, जो है उसके प्रति साक्षी भाव | इसलिए मैं कहता हूं, मेरी बातों को सोचो मत, बूझो । बूझना सहजस्फूर्त अभी और यहीं घटता है । सोचना पीछे घटता है । तुम सभी सोचते हो। काम कर लेते हो, फिर सोचते हो - ऐसा किया होता, ऐसा न किया होता। काश, ऐसा हुआ होता ! यह तुम क्या कर रहे हो ? नाटक हो चुका, अब रिहर्सल कर रहे हो ? कुछ लोग हैं जिनका रिहर्सल हमेशा नाटक के बाद होता है। तुमने अपने को कई बार पकड़ा होगा, न पकड़ा हो तो पकड़ना, बात हो चुकी - किसी ने गाली दी थी, तुम कुछ कह गए - फिर पीछे सोचते हो, ऐसा न कहा होता, मुझे क्यों न सूझा, कुछ और कहा होता ! अब हजार बातें सूझती हैं। मगर 222
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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