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________________ अशांति की समझ ही शांति करती है। वह शुद्ध चैतन्य के प्रति जाग गया। बाहर से भीतर आओ, भीतर से बाहर और भीतर दोनों के पार चलना है। लेकिन हम जरा सी देर बाद जागते हैं हम सत्य समझते हैं उनको जो नित्य नए खिलते मधुबन में रंग-बिरंगे शूल-फूल। पर अट्टहास कर पतझर कहता है हमसे वह देखो मरघट में किसकी उड़ रही धूल ? पीछे हम जागते हैं कि अरे! यह तो सपना था। सुबह हम जागते हैं कि अरे! रात जो देखा सपना था। लेकिन रात जब सपना चलता है, तब हम उसे ही सत्य मानते हैं। अगर तुम कर्म के प्रति जागने लगो-चलते समय जागे हुए चलो, बोलते समय जागे हुए बोलो, सुनते समय जागे हुए सुनो, भोजन करते हुए जागे हुए भोजन करो, बिस्तर पर लेटते हुए जागे हुए लेटो-जल्दी ही तुम पाओगे, सपने खोने लगे। क्योंकि अचानक अनेक बार नींद में भी, अचानक, तुम जाग जाओगे कि अरे! यह तो सपना है! और जैसे ही तुमने जाना, यह सपना है, सपना गया। सपने के होने की सामर्थ्य तुम्हारी मूर्छा में है। सपने का अधिकार तुम्हारी मूर्छा में है। सपने का दावा तुम्हारी बेहोशी पर है। तुम्हारे होश पर सपने का कोई दावा नहीं है। और इसीलिए तो बुद्धपुरुषों ने इस संसार को माया कहा है। क्योंकि जो जागता है उसके लिए यह नहीं है। इसका यह मतलब मत समझ लेना कि बुद्धपुरुष दीवाल में से निकलता है, क्योंकि जब दीवाल है ही नहीं तो निकलने की दिक्कत क्या? या बुद्धपुरुष पत्थर-कंकड़ खाने लगता है, क्योंकि जब फर्क ही नहीं है, सब सपना ही है, तो भोजन हो कि पत्थर हो सब बराबर है। यह मतलब नहीं है। संसार माया का अर्थ है : जिस संसार को तुमने अपनी सोयी हुई आंखों से देखा है, तुमने जो संसार अपने चारों तरफ रचा है-झूठा, कल्पनाःका। स्त्री है वहां, तुमने पत्नी देखी-पत्नी संसार है। स्त्री संसार नहीं है, स्त्री तो वास्तविक है। पत्नी, पति; मेरा, तेरा, मित्र, शत्रु, ये संसार हैं। बाहर तो लोग खाली पर्दे की तरह हैं, फिल्म तुम अपनी चलाते हो। वहां एक स्त्री है, तुम कहते हो, मेरी पत्नी है। वहां एक पुरुष है, तुम कहते हो, मेरा पति है। यह जो मेरा पति है, यह तुम्हारा प्रक्षेपण है। यह फिल्म तुमने चलायी है। हालांकि वह भी राजी है इस फिल्म को अपने ऊपर चलने देने के लिए, क्योंकि वह भी अपनी फिल्म तुम्हारे ऊपर चला रहा है। पारस्परिक सौजन्यता है। हम तुम्हारे लिए पर्दा बनते हैं, तुम हमारे लिए पर्दा बन जाओ। खेल जारी रहता है। आओ छिया-छी खेलें! स्वभावतः, तुम हमें साथ दोगे हमारे सपने सत्य बनाने में, तो हम तुम्हें साथ देंगे। जिस दिन तुमने कहा, हम साथ नहीं देते, उसी दिन खेल खतम। एक भी कह दे कि साथ नहीं देते, खेल खतम। 225
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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