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एस धम्मो सनंतनो
से भरता है, मुक्त नहीं होता। एक तो पाप, ऊपर पश्चात्ताप-दुबले और दो अषाढ़। ऐसे ही मरे जा रहे थे-पाप मार रहा था, फिर पश्चात्ताप भी मारता है। पहले तो क्रोध ने मारा; फिर अब क्रोध से किसी तरह छूटे तो पश्चात्ताप ने पकड़ा कि यह तो बुरा हो गया, यह तो पाप हो गया। पहले तो कामवासना ने छाती तोड़ी, फिर किसी तरह उससे छूट भी न पाए थे कि पश्चात्ताप आने लगा कि फिर वही भूल
कर ली। ___ तुम अगर अपने जीवन को देखोगे तो पाप और पश्चात्ताप, इन दो में बंटा हुआ पाओगे। एक कंधे से थक जाते हो ढोते-ढोते बोझ को, दूसरे कंधे पर रख लेते हो। पाप एक कंधा है, पश्चात्ताप दूसरा कंधा है। ___ मेरे देखे, अगर तुम पाप से मुक्त होना चाहते हो तो तुम्हें पश्चात्ताप से भी मुक्त होना पड़ेगा। यह बात तुम्हें बड़ी कठिन लगेगी। क्योंकि साधारणतः धर्मगुरु तुमसे कहते हैं, पश्चात्ताप से भरो। अगर पाप से मुक्त होना है तो पश्चात्ताप करो। लेकिन पश्चात्ताप शब्द का अर्थ ही क्या होता है? पश्चात-जब पाप जा चुका तब। पश्चात्ताप का अर्थ होता है : जब पाप जा चुका तब तुम उत्तप्त होते हो, तब तुम अनुताप से भरते हो। यही सूत्र है पूरा।
बुद्ध कहते हैं, 'पापकर्म करते हुए मूढजन उसे नहीं बूझता, लेकिन पीछे अपने ही कर्मों के कारण आग से जले हुए की भांति अनुताप करता है।'
अनुताप यानी पश्चात्ताप। पीछे! जब आग हाथ को जलाती है, काश तुम तभी देख लो तो हाथ बाहर आ जाए! तुम्हारा हाथ है, तुमने ही डाला है, तुम्हीं खींच सकते हो। आग को दोष मत देना, क्योंकि आग ने न तो तुम्हें बुलाया, न तुमसे कोई जबर्दस्ती की, तुमने बिलकुल स्वेच्छा से किया है।
मैंने सुना है, एक शराबी को एक बूढ़ी महिला, जो शराब के बड़े खिलाफ थी, रोज अपने मकान के सामने से शराब पीकर और डांवाडोल होते और नालियों में गिरते-पड़ते देखती थी। आखिर उससे न रहा गया। एक दिन जब वह नाली में पड़ा हुआ गंदगी में लोट-पोट रहा था, वह उसके पास गयी। उसने पानी के छींटे उसकी
आंखों पर मारे और कहा, बेटा! कौन तुम्हें मजबूर कर रहा है इस शराब को पीने के लिए? उसने कहा, मजबूर! हम स्वेच्छा से ही पीते हैं। वालेंटरिली। कोई मजबूर नहीं कर रहा है।
शायद बेहोशी में सच बात निकल गयी। होश में होता तो कहता, पत्नी मजबूर कर रही है। घर जाता हूं, दुख ही दुख है। क्या करूं, शराब में शरण ले लेता हूं। कि धंधा मजबूर कर रहा है, कि धंधा ऐसा है कि दिनभर चिंता, चिंता, चिंता, छुटकारा नहीं। थोड़ी देर शराब में विश्राम कर लेता हूं तो धंधे से छूट जाता हूं। कि संसार मजबूर कर रहा है, कि दुख, कि हजार बहाने हैं। वह तो शराब की हालत में सच बात निकल गयी। कभी-कभी शराबी से सच बात निकल जाती है। इतना भी
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