SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अशांति की समझ ही शांति होश नहीं रहता कि धोखा दे । उसके मुंह से बात बड़ी ठीक निकल गयी, स्वेच्छा से । सभी पाप स्वेच्छा से है। अगर पाप के ही क्षण में तुम्हें जाग आ जाए तो कोई भी रोक नहीं रहा है, हाथ बाहर खींच लो। तुमने ही डाला है, तुम्हीं निकाल लो; तुम्हारा ही हाथ है। बुद्ध का वचनं यह कहता है, यहीं भूल होती है, मूढ़जन ! मूढ़ता की यही परिभाषा है कि वह पीछे से बुद्धिमान हो जाती है। मूढ़जन हमेशा बाद में बुद्धिमान हो जाते हैं। बुद्धिमानों में और मूढ़ों में इतना ही फर्क है। बुद्धिमान वर्तमान में बुद्धिमान होता है, मूढ़ हमेशा बीत जाने पर। जो कल बीत गया है उसके संबंध में मूढ़ बुद्धिमान हो जाता है आज। बुद्धिमान कल ही हो गया था। जरा सा फासला है, शायद इंचभर का। बुद्धुओं में और बुद्धों में बस इंचभर का फासला है। तुम जो थोड़ी देर बाद करोगे, बुद्ध तत्क्षण करते हैं। बुद्ध का शब्द है मूढ़ के लिए - अथ पापानि कम्मानि करं बालो न बुज्झति – बाल, बचकाना आदमी ! बालबुद्धि ! बालो ! बुद्ध तो मूढ़ भी नहीं कहते हैं। क्योंकि मूढ़ शब्द थोड़ा कठोर है, थोड़ा चोट है उसमें । बुद्ध तो उसे भी माधुर्य से भर देते हैं। वे कहते हैं, बालो । क्षमायोग्य है, बच्चा है। बुद्ध ने जहां-जहां मूढ़ शब्द कहना चाहा है वहां-वहां बालक कहा है। करुणा है । वे कहते हैं, भूल तुमसे हो रही है क्योंकि तुम बालबुद्धि हो। और तुम बालबुद्धि ऐसे हो कि अगर मूढ़ कहें तो शायद तुम उससे और नाराज हो जाओ; शायद तुम हाथ आधा डाले थे, और पूरा डाल दो। तुम्हारी मूढ़ता ऐसी है कि अगर मूढ़ कोई कह दे, तो तुम और अंधे होकर मूढ़ता करने लगोगे । बुद्ध कहते हैं, बालबुद्धि ! अबोध ! होश नहीं है। जाग्रत नहीं है। बच्चे का तुम एक गुण समझ लो । छोटे बच्चे को दिन और रात में फर्क नहीं होता, सपने और जागरण में फर्क नहीं होता। कई बार छोटे बच्चे सुबह उठ आते हैं और रोने लगते हैं। वे एक सपना देख रहे थे, जिसमें अच्छे-अच्छे खिलौने उनके पास थे, वह सब छिन गए। वे रोते हैं कि हमारे खिलौने कहां ? मां समझाती है कि वह सपना था। लेकिन मां समझ नहीं पा रही है कि सपने के लिए कहीं कोई रोता है ! लेकिन बच्चे को अभी सपने और सत्य में सीमा रेखा नहीं है। अभी सपना और सत्य मिला-जुला है। अभी दोनों एक-दूसरे में गड्डमड्ड हैं। अभी विभाजन नहीं हुआ । बालबुद्धि व्यक्ति सपने में और सत्य में विभाजन नहीं कर पाता। उसके लिए जागरण चाहिए, होश चाहिए। तभी तुम समझ पाओगे क्या सच है, क्या झूठ है । बुद्धिमान आदमी वही है जो कर्म करते हुए जाग्रत है। जो कर रहा है उसे परिपूर्ण जागरण से कर रहा है । इसीलिए बुद्धिमान आदमी कभी पश्चात्ताप नहीं करता, पश्चात्ताप कर नहीं सकता। क्योंकि जो किया था, जागकर किया था । करना चाहा था तो किया था, इसलिए पश्चात्ताप का कोई कारण नहीं। न करना चाहा था तो नहीं 217
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy