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अशांति की समझ ही शांति
युवक ने कहा कि मैं परमात्मा को खोजना चाहता हूं। बहुत अंधेरे में जी रहा हूं, अब मेरा दीया जला दो। उस फकीर ने कहा कि देख भीतर का दीया तो जरा समय लेगा, सांझ हो गयी है, सूरज ढल गया, वह दीवाल के दीवे में रखा हुआ दीया है, आले से उस दीए को उठा ला और पहले उसको जला ।
वह युवक गया। उसने लाख कोशिश की, दीया जले ही न। उसने कहा, यह भी अजीब सा दीया है! इसमें ऐसा लगता है तेल में पानी मिला है, बाती पानी पी गयी है, तो धुआं ही धुआं होता है। कभी-कभी थोड़ी चिनगारी भी उठती है, मगर लौ नहीं पकड़ती। तो उस सूफी ने कहा, तो तू दीए से पानी को अलग कर । तेल को छांट। बाती में पानी पी गया है, निचोड़। बाती को सुखा, फिर जला । उसने कहा, तब तो यह पूरी रात बीत जाएगी इसी गोरखधंधे में ।
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सूफी ने कहा, छोड़ ! फिर इधर आ । तेरे भीतर का दीया भी ऐसी ही उलझन में है। दीया जलाना तो बड़ा सरल है, लेकिन तेल में पानी मिला है। बाती में जल चढ़ गया है। अब सिर्फ माचिस जला - जलाकर माचिस को खराब करने से कुछ न होगा। सारी स्थिति बदलनी होगी। दीया तो जल सकता है। लेकिन तू अभी चाहे तो तू बाधा है ।
जब मैं बुद्ध के वचनों पर बोलता हूं, तो बुद्ध के वचन पर भी ध्यान है, तुम्हारे दी पर भी ध्यान है। क्योंकि अंततः तो सिर्फ प्रकाश को जलाने की बातों से कुछ न होगा। यही फर्क है।
धम्मपद पर बहुत टीकाएं लिखी गयी हैं। जो मैं कह रहा हूं वह बिलकुल भिन्न है। क्योंकि धम्मपद पर लिखी टीकाओं ने सिर्फ बुद्ध के वचनों को साफ कर दिया है। वे वैसे ही साफ हैं; उनमें कुछ साफ करने को नहीं । उलझन आदमी में है । और मेरे लिए तुम ज्यादा महत्वपूर्ण हो, क्योंकि अंततः तुम्हारे ही दीए की सफाई प्रकाश को जलने में आधार बनेगी। दीया जलाना सदा से आसान रहा है । क्या अड़चन है ! मगर अड़चन तुम्हारे भीतर है।
इसलिए जब मैं बुद्ध के वचनों को समझाने चलता हूं तो मैं तुम्हें बीच-बीच में लेता चलता हूं। क्योंकि जब तुम चलोगे उन वचनों पर, तब धम्मपद काम न आएगा, तुम बीच-बीच में आओगे। तुम्हें रोज-रोज अपने को रास्ते से हटाना पड़ेगा । न गीता काम आती, न कुरान काम आता। हां, उनसे तुम प्रेरणा ले लो। उनसे तुम सुबह की खबर ले लो। उनसे तुम दीया जलाने का स्मरण ले लो। फिर दीया तो तुम्हें ही जलाना है— अपने ही दीए में, अपने ही पानी मिले तेल में, अपनी ही गीली बाती में ।
'पापकर्म करते हुए वह मूढ़जन उसे नहीं बूझता है।'
पापकर्म करते हुए! पापकर्म कर लेने के बाद तो सभी बुद्धिमान हो जाते हैं। तुम भी हजारों बार बुद्धिमान हो गए हो - कर लेने के बाद ! करते क्षण में जो जाग जाए वह मुक्त हो जाता है । कर लेने के बाद जो जागता है, वह तो सिर्फ पश्चात्ताप
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