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________________ एस धम्मो सनंतनो आतापिनो संवेगिनो भवाथ। सद्धाय सीलेन च वीरियेन च समाधिना धम्मविनिच्छयेन च। सम्पन्नविरजाचरणा पतिस्सता पहस्सथ दुक्खमिदं अनप्पकं ।।१२४।। अथ पापानि कम्मानि करं वालो न बुज्झति। 'पापकर्म करते हुए वह मूढजन उसे नहीं बूझता है। लेकिन पीछे वह दुर्बुद्धिजन अपने ही कर्मों के कारण आग से जले हुए की भांति अनुताप करता है।' ___ महत्वपूर्ण है। एक-एक शब्द समझने जैसा है। सरल सा दिखता है, सरल नहीं है। बुद्धों के वचन सदा ही सरल दिखते हैं। उनकी भीतर की सरलता से आते हैं, इसलिए वचनों में कोई जटिलता नहीं होती। लेकिन जब तुम उन्हें जीवन में उतारने चलोगे, तब अड़चन मालूम होगी। बुद्ध वचनों को समझना सरल, जीना कठिन होता है। जीने चलोगे तब पता चलेगा कि उनके सरल से दिखायी पड़ने वाले वचन प्रतिपग हजार कठिनाइयों से गुजरते हैं। कठिनाइयां तुमसे आती हैं। जटिलता तुम्हारी है। मार्ग के पत्थर तुम पैदा करते हो। लेकिन तुम भी क्या करोगे-तुम तुम हो। ___ अगर तुम भी जागे हुए होओ तो ऐसे ही बुद्ध वचनों के आकाश में उड़ो जैसे पक्षी आकाश में उड़ते हैं। पक्षियों के लिए आकाश में उड़ना कैसा सरल है! सीखने की भी जरूरत नहीं पड़ती, स्वभाव से ही लेकर आते हैं। लेकिन आदमी अगर आकाश में उड़ना चाहे तो जटिलता आती है-आदमी के कारण आती है। __ ये सारे वचन बड़े सरल हैं। कभी-कभी तो तुम्हें ऐसा भी लगेगा-किसी ने पूछा भी था पीछे—कि जब आप वचन पढ़ते हैं तो बहुत सरल लगता है; जब आप समझाते हैं तो और कठिन हो जाता है। ऐसा होता होगा। वचन तो सरल लगता है, लेकिन जब मैं समझाता हूं तब मैं तुम्हारी कठिनाइयों को उभारकर सामने लाता हूं। वचन से तुम्हारा तो कोई मेल न हो पाएगा; तुम तो मरोगे तो ही वचन से मिलन होगा। तुम तो मिटोगे। तुम्हारी यह चट्टान तो पिघले, बहे, तो ही एस धम्मो की तुम्हें प्रतीति होगी। तो जब मैं बोलता हूं तो बुद्ध के वचन पर ही ध्यान नहीं है, क्योंकि वह ध्यान अधूरा होगा—तुम पर भी ध्यान है। बुद्ध के वचन से भी ज्यादा तुम पर ध्यान है। __मैंने एक सूफी कहानी सुनी है। एक फकीर के पास एक युवक गया और उस 214
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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