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________________ महोत्सव से परमात्मा, महोत्सव में परमात्मा चमन के फूल, हवा का खिराम, गुल की चटक __ हर एक जिंदा मसर्रत से खौफ खाते हैं और तुम सदा पाओगे कि जहां भी कोई जिंदा सुख हो, उससे वे घबड़ाते हैं। मरे-मराए सुखों की बातें करते हैं। या, कभी होने वाले सुखों की बातें करते हैं। किन्हीं स्वर्गों की, जो होंगे। किन्हीं स्वर्गों की, जो कभी थे। चमन के फूल, हवा का खिराम, गुल की चटक . हर एक जिंदा मसर्रत से खौफ खाते हैं __ और जहां भी जिंदगी की खुशी दिखायी पड़ती है, कहीं कोई जिंदा सुख मालूम पड़ता है, उससे घबड़ाते हैं। मैं तुमसे कहता हूं, जो जिंदा सुख से घबड़ाए वह भगवान का दुश्मन है। क्योंकि फूल उसी के हैं। हवा की लहरें उसी की हैं। पक्षियों के गीत उसी के हैं। यह जो नाच चल रहा है चारों तरफ, यह जो जीवन का उत्सव चल रहा है चारों तरफ, यह उसी का है। इससे जो घबड़ाया, इससे जो शरमाया, इससे जो बचा, वह आदमी मुर्दा है। उसका भगवान भी मुर्दा होगा। जिंदा भगवान तो यहां है। मुर्दा भगवान कहीं और, सात आसमानों के पार। कभी खुदा न करे मुस्कुराएं भी ये बुजुर्ग तो किस कबींद मतानत से मुस्कुराते हैं - और ऐसे लोग हंसते तो हैं ही नहीं। और भगवान न करे कि कभी वे हंसें भी! क्योंकि वे हंसते हैं तो उनकी हंसी में भी ऐसी घबड़ाहट, ऐसी गंभीरता, ऐसी निंदा! उनकी हंसी में भी हंसी नहीं होती, उनकी हंसी में भी लाश की सड़ांध होती है। . रवाबे-जीस्त के आतिश-मिजाज तारों पर ये पंक्तियां बड़ी प्यारी हैं। जिंदगी के स्वर बड़े गर्म-गर्म हैं। जिंदा हैं तो गर्म हैं। रवाबे-जीस्त के आतिश-मिजाज तारों पर और यह जिंदगी का बाजा है, जिंदगी का साज है। इसके गर्म-गर्म तार हैं। तैयार हैं कि छेड़ो अभी। निमंत्रण है, बुलावा है कि नाचो अभी, गाओ अभी। रवाबे-जीस्त के आतिश-मिजाज तारों पर गिलाफ बर्फजदा फिक्र के चढ़ाते हैं और ये जो पंडित हैं, पुरोहित हैं, मौलवी हैं, ये इन गर्म-गर्म जिंदगी की वीणा के तारों पर फिक्र और चिंता की बर्फ चढ़ाते हैं। ठंडा कर देते हैं। मार डालते हैं। है मर्गे-फिक वह मुर्दा बुलंद परवाजी और ये बातचीतें और ये विचारों की उड़ानें सब मरी हुई हैं। कि जिससे जीस्त के आसाब ऐंठ जाते हैं जिससे जिंदगी ऐंठ जाती है। जीवन के अंग ऐंठ जाते हैं। ये सब बातें हैं। जिंदगी के विपरीत हैं। मौत की पक्षपाती हैं। 207
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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