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एस धम्मो सनंतनो
कल पर क्यों छोड़ रहे हो? वीणा सामने रखी है, अंगुलियां वीणा पर पड़ी हैं, तुम तार छेड़ना कल पर क्यों छोड़ रहे हो? क्या तुम्हें पक्का है? यह हो सकता है वीणा कल भी हो, तुम न हो।
कल पर छोड़ने की आदत संसार में खतरनाक से खतरनाक आदत है। आज ही जी लो। लेकिन तुम्हें सदा यही सिखाया गया है, कल पर छोड़ो। क्योंकि तुम्हें यह सिखाया गया है, हर चीज की तैयारी करनी होगी। तैयारी के लिए कल की जरूरत है। आज कैसे भोगोगे? सितार बजानी है? तो पहले सीखनी भी तो पड़ेगी। सीखने के लिए कल तक ठहरना पड़ेगा। गीत गाना है? तो कंठ को साधना भी तो पड़ेगा। आवाज को व्यवस्था तो देनी होगी। तो कल की जरूरत पड़ेगी। __मगर मैं तुमसे कहता हूं, भगवान को भोगने के लिए कुछ भी तैयारी की जरूरत नहीं है। जो बिना तैयारी उपलब्ध है, वही भगवान है। जो तैयारी से मिलता है, उसका नाम ही संसार है। तुम्हें बड़ी उलटी लगेगी मेरी बात। ____ मैं तुमसे फिर कहूं, जो साधना से मिलता है, उसका नाम संसार है। जो मिला ही हुआ है, उसका नाम भगवान है। संसार के लिए कल की जरूरत है, समय की जरूरत है, भगवान के लिए कोई जरूरत नहीं। यह गीत कुछ ऐसा है कि कंठ को साधना नहीं, बस गाना है। यह स्वर कुछ ऐसा है कि कोई प्रशिक्षण नहीं लेना है। ऐसा ही है जैसे कि मोर नाचता है—बिना किसी प्रशिक्षण के, बिना किसी नृत्यशाला में गए। पक्षी गीत गा रहे हैं—बिना कंठ को साधे। तुम जैसे हो भगवान वैसे ही प्रगट होने को तैयार है। तुम जैसे हो वैसा ही भगवान ने तुम्हें स्वीकारा है। कल मैं एक गीत पढ़ता था, मुझे प्रीतिकर लगा
यह बाविकार मुकफ्फिर, यह फलसफी शायर बहुत बुलंद फिजाओं में फड़फड़ाते हैं चमन के फूल, हवा का खिराम, गुल की चटक हर एक जिंदा मसर्रत से खौफ खाते हैं कभी खुदा न करे मुस्कुराएं भी ये बुजुर्ग तो किस कबींद मतानत से मुस्कुराते हैं रवाबे-जीस्त के आतिश-मिजाज तारों पर गिलाफ बर्फजदा फिक्र के चढ़ाते हैं है मर्गे-फिक्र वह मुर्दा बुलंद परवाजी
कि जिससे जीस्त के आसाब ऐंठ जाते हैं दार्शनिक, पंडित, पुरोहित, विचारक, शास्त्रज्ञ बड़ी ऊंची हवाओं की बातें करते हैं, बड़े ऊंचे आसमानों की बातें करते हैं। लेकिन वे बातें हैं। उन आसमानों में कभी उड़ते नहीं। जिंदगी उनकी जमीन पर सरकती हुई पाओगे। बातें आकाशों की। वे सिर्फ सपने हैं। और
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