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महोत्सव से परमात्मा महोत्सव में परमात्मा
में रस, राग, वैभव, विलास; बुढ़ापे में संन्यास की बातें, त्याग, विराग सारी भाषा बदल जाती है। पर होता कुल इतना ही है कि सिक्के का दूसरा पहलू सामने आता है। ___ मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि सिक्के के किसी भी पहलू को जरूरत से ज्यादा मूल्य मत दे देना। दूसरा भी उतना ही मूल्यवान है। दोनों बराबर मूल्य के हैं। और अगर एक साथ तुमने दोनों का बराबर मूल्य आंक लिया, दोनों तुल गए तराजू पर बराबर, तो तुम दोनों से मुक्त हो जाओगे।
उस व्यक्ति को ही मैं सम्यक-ज्ञान को उपलब्ध कहता हूं, जिसने मन के सारे विरोधों को साथ रखकर देख लिया। और जिसने चुनाव करना बंद कर दिया। और जिसने कहा, यह पूरा मन ही लुका-छिपी है। एक सामने आता है, दूसरा छिप जाता है। फिर हम धोखे में पड़ जाते हैं। ___ जो धोखे में नहीं पड़ता, जो दोनों को देखकर, दोनों के विरोध को देखकर, दोनों का अनिवार्य सत्संग देखकर दोनों से छुटकारा पा लेता है; द्वंद्व से जो मुक्त हो जाता है; द्वैत से, दुई से जो मुक्त हो जाता है, वही परम शाश्वतता में ठहरता है। वही स्वभाव को उपलब्ध होता है।
आखिरी प्रश्नः
भगवान होने का आनंद अगर लेना हो, तो इसी क्षण भगवान होकर लो; क्या यही आपकी देशना है?
कल भ्रांति है। आज ही सत्य है। आने वाला क्षण भी आएगा या नहीं, कोई भी
कह नहीं सकता। जो आ गया है, बस वही आ गया है। . तो कल पर छोड़ कैसे सकते हो? कल है कहां?
कल रात यूरोप से एक युवक आया और संन्यस्त हुआ। मैंने उससे पूछा, कब तक रुकोगे? उसने कहा, कल तक रुका हूं। तो मैंने कहा, फिर तुम कभी जा न सकोगे, क्योंकि कल तो कभी आता नहीं। वह थोड़ा घबड़ाया। अगर कल तक रुके हो, तो सदा के लिए रुकना पड़ेगा। क्योंकि कल जब आएगा तो आज हो जाता है। आज होकर ही कुछ आता है।
समय का स्वभाव आज है, अभी है। कल तो मन की कल्पना है। कल तो मन का फैलाव है। कल तो आज से बचने का उपाय है।
तो अगर तुम कहते हो कि कल लेंगे भगवान होने का आनंद, तो तुम कभी न ले पाओगे। भगवान तो अभी है, यहीं है। सब साज-सामान तैयार है। तुम गाना
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