________________
एस धम्मो सनंतनो
थी लगी हाट मदिरा की, मधुपों का मेला हैं आज पखुड़ियां बिखरी उसकी धरती पर
है खड़ा हुआ छाती पर मिट्टी का ढेला यह तो रोज ही होता रहा है। अभी क्षणभर पहले जो फूल आकाश में इतराता था, क्षणभर बाद मिट्टी में दबा है। अभी क्षणभर पहले जवानी गीत गाती थी, क्षणभर बाद बुढ़ापा रो रहा है। ___मन तो रोज बदलता चला जाता है। कभी एक स्वर महत्वपूर्ण मालूम होता है, कभी दूसरा स्वर महत्वपूर्ण मालूम होता है। मन के साथ तो यह धोखा, यह लुका-छिपी चलती ही रहती है। मन का नियम यह है कि मन पूर्ण को नहीं देख सकता।
इसे तुम समझने की कोशिश करो।
मन केवल आधे को देख सकता है। जैसे मैं तुम्हारे हाथ में एक सिक्का दे दूं। सिक्का छोटा सा है। क्या तुम दोनों पहलुओं को एक साथ देख सकोगे? जब तुम सिक्के का एक पहलू देखोगे, दूसरा दब जाएगा। जब दूसरा देखोये, पहला दब जाएगा। आज तक किसी मनुष्य ने पूरा सिक्का नहीं देखा है। तुम सोचते हो कि तुमने देखा, क्योंकि तुम दोनों अलग-अलग देखे पहलुओं को कल्पना में जोड़ लेते हो। अन्यथा तुमने पूरा सिक्का नहीं देखा है। अगर तुम बहुत तर्कयुक्त होओ, तो तुम दूसरे सिक्के के संबंध में, दूसरे पहलू के संबंध में कुछ भी नहीं कह सकते।
मैंने सुना है, एक बहुत बड़ा विचारक विगिंस्टीन ट्रेन से यात्रा कर रहा था। बड़ा तर्कयुक्त मनुष्य था। पास ही एक मित्र बैठा था, खिड़की से उन्होंने झांककर देखा, सर्दी की सुबह, धूप निकली है, और एक खेत में बहुत सी भेड़ें खड़ी हैं। उनके बाल अभी-अभी काटे गए हैं। वे सर्दी में थरथरा रही हैं। धूप में एक-दूसरे से सिकुड़ी खड़ी हैं।
मित्र ने विटिगंस्टीन को कहा, देखते हैं, मालूम होता है भेड़ों के बाल अभी-अभी काटे गए हैं। ठंड पड़ रही है और भेड़ें ठंड में सिकुड़ रही हैं। विटिगंस्टीन ने गौर से देखा और कहा, जहां तक इस तरफ दिखायी पड़ने वाले हिस्से का सवाल है, जरूर बाल काटे गए हैं, उस तरफ की मैं नहीं जानता। भेड़ को पूरा तो कोई देख नहीं रहा, उस तरफ का क्या पता? इस तरफ से भेड़ें ठिठुर रही हैं ठंड में, यह पक्का है। उस तरफ की मैं कुछ भी नहीं कह सकता।
मन एक चीज के एक ही पहलू को देख पाता है एक बार में। जवानी में एक पहलू देखता है, बुढ़ापे तक जब तक सिक्का उलटता है, दूसरा पहलू देख पाता है। तो जवानी में कहता है, यह महत्वपूर्ण है। बुढ़ापे में कहने लगता है, कुछ और महत्वपूर्ण है। जवानी में राग-रंग महत्वपूर्ण था, बुढ़ापे में त्याग की भाषा महत्वपूर्ण हो जाती है। जवानी में मदिरालय जाता था, बुढ़ापे में मस्जिद जाने लगता है। जवानी
204