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________________ एस धम्मो सनंतनो तुमने जिन्हें अब तक धर्मों की तरह जाना है—बद्धों को छोड़ दो, महावीरों, कृष्णों को छोड़ दो, उनके धर्म से तुम्हारी कोई पहचान नहीं, उनका तो धर्म यही है कि भगवान अभी हो जाओ; उनका तो सभी का संदेश यही है कि वर्तमान के अतिरिक्त और कोई समय नहीं है, उन्होंने तो सभी ने कहा है कि इसी क्षण को तुम शाश्वत बना लो, इसी में डूब जाओ-लेकिन उनके नाम पर पंडितों-पुरोहितों ने जो संप्रदाय खड़े किए हैं, वे सब तुम्हें कल की तैयारी कहते हैं। वे कहते हैं, आज छोड़ो, कल की तैयारी करो। उनकी वजह से ही तुम उदास हो, उनकी वजह से ही तुम्हारी जिंदगी के अंग ऐंठ गए हैं। उनकी वजह से तुम कुछ भी उत्सव नहीं मना पाते। गुरजिएफ कहता था कि सभी धर्म भगवान के खिलाफ हैं। बड़ा कठिन वक्तव्य है। क्योंकि हमें तो लगता है, धर्म तो भगवान के पक्षपाती हैं। गुरजिएफ कहता है, . सभी धर्म भगवान के खिलाफ हैं। मैं भी कहता हूं। धार्मिक व्यक्ति भगवान के खिलाफ नहीं होता। धर्म सभी भगवान के खिलाफ हैं। धार्मिक व्यक्ति तो कभी-कभार होता है। जो धर्मों की जमातें हैं, वे परमात्मा के विपरीत हैं। तुम्हारे महात्मा सभी परमात्मा के विपरीत हैं। महात्मा तुम्हें जिंदगी को छोड़ना सिखाते हैं, और परमात्मा ने तुम्हें जिंदगी दी है। और महात्मा कहते हैं छोड़ो, और परमात्मा कहता है भोगो, जीवन परम भोग है। अगर तुमने मेरी बातों को ठीक से समझा, तो मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि तुम अपने परमात्मा को अपने जीवन की ऊंचाई बनाओ। तुम अपने परमात्मा को अपने जीवन के विपरीत मत रखो; अन्यथा तुम अड़चन में पड़ोगे। न तुम जिंदगी के हो पाओगे, न परमात्मा के हो पाओगे। तुम दो नावों में सवार हो जाओगे, जो विपरीत जा रही हैं। तुम परमात्मा को जीवन का स्वर समझो, और तुम जीवन के प्रतिपल को प्रार्थना बनाओ। तुम जीवन को इस ढंग से जीओ कि वह धार्मिक हो जाए। धर्म के लिए जीवन में अलग से खंड मत खोजो। धर्म को पूरे जीवन पर फैल जाने दो। लेकिन दुखी लोग हैं, जो दुख को पकड़ते हैं। वे जीवन में सब तरह के दुख का आयोजन करते हैं। पहले धन के नाम पर दुखी होते हैं, पद के नाम पर दुखी होते हैं, फिर किसी तरह इनसे छुटकारा होता है तो भगवान के नाम पर दुखी होते हैं। लेकिन दुख की आदत उनकी छूटती नहीं। तुझको मस्जिद है मुझको मयखाना वाइजा, अपनी-अपनी किस्मत है कुछ हैं जो जिंदगी को मधुशाला बना लेते हैं। जिनकी जिंदगी एक उत्सव होती है, महोत्सव। एक अहर्निश आनंद। और कुछ हैं जो जिंदगी को मस्जिद बना लेते हैं, चर्च। उदास, मुर्दा। मरघट का हिस्सा मालूम पड़ता है, जीवन का नहीं। अपनी-अपनी किस्मत! वाइजा, अपनी-अपनी किस्मत है 208
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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