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एस धम्मो सनंतनो
इसको तुम थोड़ा सोचो इस तरह से ।
बुद्धपुरुषों ने कहा कि अगर तुम चाहते हो कि मौत से छुटकारा हो जाए, तो जीवन से छुटकारा चाहिए। जब तक तुम जीवन को पकड़ोगे, मौत भी आती ही रहेगी । तुम्हारे जीवन को पकड़ने में ही तुमने मौत को निमंत्रण दे दिया । जीवेषणा मौत को लाएगी। और जीवन और मृत्यु का चाक घूमता रहेगा। तुम जीवन को छोड़ो, मौत अपने से छूट जाती है। तुमने सम्मान चाहा तो अपमान आता ही रहेगा। तुम सम्मान छोड़ो, अपमान अपने से छूट जाता है। तुमने कुछ परिग्रह करना चाहा, तो तुम्हारे जीवन में कभी न कभी खोने का दुख झेलना ही बदा है। तुम खुद ही छोड़ दो, फिर तुमसे कुछ भी छूट नहीं सकता। पकड़ोगे तो छूटेगा । न पकड़ोगे तो छूटने की बात ही समाप्त हो गयी ।
इसलिए पूरब की सारी मनीषा एक बात कहती है, अगर तुम चाहते हो कि दुख मिट जाए तो सुख का त्याग कर दो। इसमें विरोध का नियम काम कर रहा है। तुम चाहते हो, सुख तो बच जाए और दुख का त्याग हो जाए। तुम असंभव की कामना कर रहे हो। इसका यह अर्थ हुआ, अगर तुम जीवन से घृणा के रोग को छोड़ देना चाहते हो, तो जिसे तुम प्रेम कहते हो उसे भी छोड़ दो। तब तुम्हारे जीवन में एक निष्कलुषता आएगी, जिसमें न तो प्रेम होगा - जिसे तुम प्रेम कहते हो, वह नहीं होगा - जिसे तुम घृणा कहते हो, वह भी नहीं होगी। कुछ नयी ही गंध होगी, कुछ नयी ही बात होगी । तुम्हारी भाषा में कहीं भी न आ सके, ऐसी कुछ बात होगी । अनिर्वचनीय कुछ होगा। अव्याख्य कुछ होगा । कुछ नए शब्द खोजने पड़ेंगे।
इसलिए हम बुद्ध को प्रेमी नहीं कह सकते, क्योंकि प्रेम तो बिना घृणा के हो नहीं सकता। इसलिए हमने उनको करुणावान कहा। जरा सा शब्द अलग किया। लेकिन करुणावान भी कहना क्या ठीक है ? क्योंकि करुणा भी क्रोध के बिना नहीं हो सकती।
मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि बुद्ध के लिए तुम्हारी भाषा का कोई भी शब्द लागू नहीं हो सकता। क्योंकि जो भी शब्द तुम उपयोग करोगे, उससे विपरीत को भी स्वीकार करना पड़ेगा। तुम बुद्ध को त्यागी नहीं कह सकते, क्योंकि त्यागी वे तभी हो सकते हैं जब भोगी हों । तुम उनको ज्ञानी भी नहीं कह सकते, क्योंकि ज्ञानी वे तभी हो सकते हैं जब अज्ञानी भी हों । तुम उन्हें संन्यासी भी नहीं कह सकते, क्योंकि संन्यासी वे तभी हो सकते हैं जब संसारी भी हों ।
फिर क्या कहो ? इसलिए शास्त्र कहते हैं, उस संबंध में चुप ही रहा जा सकता है। कुछ कहा नहीं जा सकता। उस संबंध में मौन ही वक्तव्य हैं।
तो पहली तो यह बात कि दोनों साथ-साथ हैं, बराबर वजन के हैं। न तो घृणा ज्यादा है, न प्रेम ज्यादा है । और दूसरी बात, जीवन के प्रतिपल में स्थिति बदलती रहती है। जब तुम जवान होते हो, तब मोह ज्यादा लगता है। लगता है ! वह जवानी
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