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महोत्सव से परमात्मा, महोत्सव में परमात्मा
लिया, तुमने कहा कि बात सीधी-साफ करो, अगर पत्नी से लगाव है, तो ठीक, साथ रहो। अगर लगाव नहीं, तो छोड़ दो, बात खतम करो। ___काश, जिंदगी इतनी.सीधी-सीधी होती! ऐसा अंधेरे-उजेले की तरह जिंदगी बंटी होती! बंटी नहीं है। जिंदगी बड़ी मिश्रित है।
तुम अगर किसी से पूछो, ठीक-ठीक कहो, प्रेम या घृणा? तो वह भी कहेगा, वह कहेगा, पक्का करना मुश्किल है। कभी घृणा भी होती है, कभी प्रेम भी होता है। सुबह घृणा होती है, शाम प्रेम हो जाता है। खोजने से पता चला है कि प्रेम और घृणा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। बदलते रहते हैं।
इसलिए गलत प्रश्न से शुरुआत हम न करें। जीवन में जहां-जहां अति दिखायी पड़ती हो, वहां समझ लेना कि बीच में सेतु भी होगा। रात भी कहीं दिन से अलग है! मौत कहीं जिंदगी से अलग है! मौत कहीं जिंदगी के बाहर थोड़े ही घटती है, जिंदगी के भीतर ही घटती है। मौत आने के पहले मर थोड़े ही जाते हो, जिंदे ही रहते हो। जब मौत आती है, तुम्हें जिंदा ही पाती है। ऐसा थोड़े ही है कि पहले मर गए, फिर मौत आती है। मौत जिंदगी के भीतर है, बाहर नहीं है। और मौत जिंदगी के विपरीत भी नहीं है। क्योंकि तुम हटते हो, तो किसी के लिए जगह खाली करते हो, कोई और जिंदा हो पाता है। बूढ़ा मरता है, तो बच्चा पैदा हो पाता है। पुराने पत्ते गिर जाते हैं, तो नए पत्ते निकल आते हैं। पुराने पत्ते न गिरें, तो नए पत्ते न निकलेंगे। __तुम थोड़ा ऐसा सोचो, तुम्हारे बुजुर्ग अगर न मरते, तो तुम नहीं हो सकते थे। तुम हो, क्योंकि उनकी बड़ी कृपा थी, वे मर गए। अगर वे बने ही रहते और अड्डा जमाए बैठे रहते, तुम कहां होते? वैज्ञानिक कहते हैं, जहां तुम बैठे हो, वहां कम से कम दस आदमियों की लाशें दबी हैं। हर स्थान पर इतने आदमी हो चुके। तुम थोड़ा सोचो, कोई मरता न, तो जिंदगी मरने से बदतर हो जाती। सब बूढ़े, जरा सोचो तो! कौरव-पांडव से लेकर सब ऋषि-मुनि, सब राक्षस, सब बैठे हैं पृथ्वी पर, तुम भी आ गए! वे गला घोंट देते तुम्हारा। तुम्हारे लिए जगह कहां थी? . • तुम हो सके हो, क्योंकि कोई नहीं हो गया है। किसी के नहीं होने से तुम्हारा होना जुड़ा है। अब अगर तुम बहुत जिद्द करोगे कि मैं सदा ही बना रहूं, तो तुम दूसरों के होने में बाधा बन जाओगे। जब तुम्हारा मौका आए तुम हट जाओ, ताकि दूसरे हो सकें। जीवन मौत के साथ-साथ चल रहा है। मौत जीवन का ही उपाय है। मौत जीवन का ही हिस्सा है। एक बार तुम्हें यह समझ में आ जाए कि विरोधी जुड़े हैं, फिर जीवन के संबंध में कई बातें साफ हो सकती हैं।
पूछा है कि 'बुनियादी कौन है? बली कौन है?'
कोई भी नहीं। दोनों साथ-साथ हैं। और अगर छोड़ना हो, तो दोनों ही छोड़ने पड़ते हैं। इसीलिए तो भारत के मनीषियों ने कहा कि अगर तुम्हें मौत से बचना हो तो जीवन का त्याग कर देना होगा।
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