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________________ एस धम्मो सनंतनो बैरा पूछता है, आप चाय लेंगे या काफी? फर्क समझे आप? अगर बैरा पूछे, आप चाय लेंगे या नहीं, तो पचास मौके नहीं के हैं, पचास मौके चाय के हैं। बैरा पूछता है, आप चाय लेंगे या काफी? तो पचास मौके चाय के हैं, पचास मौके काफी के हैं। आपको छूटने का मौका नहीं दे रहा है। आपको नहीं कहने का अवसर नहीं दे रहा है। इसलिए पश्चिम में तो विक्रेताओं को प्रशिक्षित किया जाता है कि ग्राहक से कैसी बात करनी, क्या कहना! क्योंकि तुम्हारे कहने पर उसका उत्तर निर्भर करेगा। अगर तुम खुद ही पचास परसेंट न कहने का अवसर दे रहे हो, तो तुम काहे के विक्रेता? तुमने आधी दुकान तो बरबाद कर दी। आधा काम-धंधा तो तुमने खराब ही कर लिया। यह तुमने गलत जगह से पूछ लिया। नहीं, ऐसा पूछना ठीक नहीं। मनुष्य जाति बहुत से ऐसे प्रश्नों से पीड़ित रही है जो गलत जगह से पूछे गए। बस एक दफा पूछ लिया कि झंझट खड़ी हो जाती है। और हमारी आदतें सिखाने की, हमें सिखाया गया है हां और न की आदतें। अंधेरा और उजेला, रात और दिन, मौत और जिंदगी, हम दो हिस्सों में बांटकर देखते हैं। जिंदगी दो हिस्से में बंटी नहीं है। जिंदगी तो सतरंगी है। इंद्रधनुष जैसी है। तुम पूछो, इंद्रधनुष सफेद कि काला? तो क्या कहें? इंद्रधनुष न काला, न सफेद। इंद्रधनुष सतरंगी है। तुम्हारे काले-सफेद में प्रश्न बनता ही नहीं। यह तो ऐसा ही है जैसा कोई आदमी तुमसे पूछे, कि हां और न में जवाब दे दें-अपनी पत्नी को अब भी पीटते हैं या नहीं? अगर कहो हां, तो उसका मतलब हुआ अभी भी पीटते हैं। अगर कहो नहीं, तो उसका मतलब पहले पीटते थे। उसने छोड़ा ही नहीं अवसर। यह भी हो सकता है कि आप पीटते ही न हों। प्रश्न पूछा जाता है कि अहिंसा या हिंसा, प्रेम या घृणा, क्रोध या करुणा? यह जीवन को बांटने का गलत ढंग है। जीवन सतरंगा है। हां और नहीं में बंटा हुआ नहीं है। हां और नहीं के बीच बहुत सी सीढ़ियां हैं। सीढ़ी दर सीढ़ी यहां बहुत मात्राएं हैं। यहां ऐसी भी जगह है, जहां न घृणा, न प्रेम-उपेक्षा। उपेक्षा भी है। और यहां ऐसी भी घड़ियां हैं, जहां घृणा भी और प्रेम भी, दोनों साथ-साथ। ____ मनस्विद कहते हैं, तुम जिसको प्रेम करते हो उसी को साधारणतः घृणा भी करते हो। इसीलिए तो पति-पत्नियों के इतने झगड़े चलते हैं। जिससे प्रेम, उसी से घृणा। अब तुम उनसे कहो, इतना झगड़ा चलता है तो छोड़ ही क्यों नहीं देते? तुम बात ही गलत कर रहे हो, प्रेम भी है। छोड़ तो सकते ही नहीं। न छोड़ सकते हैं, न साथ रह सकते हैं। पति-पत्नी का संबंध ऐसा संबंध है कि बिना भी नहीं रह सकते और साथ भी नहीं रह सकते। पत्नी दूर चली जाती है तो याद आती है, पास चली आती है तो छुटकारे की कामना पैदा होने लगती है। ___ अगर तुम जीवन को सीधा-सीधा देखो, लेकिन अगर तुमने गणित से बांध 200
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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