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महोत्सव से परमात्मा, महोत्सव में परमात्मा
मैं
अड़चन न हुई, और तुमने सोचा कि हमारा तो प्रेम का नाता है। खिलाफ बोला, तुम समाजवादी कभी थे ही नहीं, तुमने कहा, वक्तव्यों से कुछ नहीं लेना, हमारा तो प्रेम का नाता है।
थोड़ी प्रतीक्षा करो, कहीं न कहीं से मैं तुम्हारी जड़ पकड़ ही लूंगा। तुम ज्यादा देर न बच पाओगे। कहीं न कहीं से मैं तुम्हारे मत, तुम्हारे शास्त्र पर हमला करूंगा ही । करना ही पड़ेगा। क्योंकि जब तक मैं तुम्हें तुम्हारे शास्त्र से मुक्त न करूं, तब तक मैं तुम्हें तुम्हारी बुद्धि से मुक्त न कर पाऊंगा। जब तक तुम तुम्हारी बुद्धि से मुक्त न होओ, तब तक अहंकार के नीचे से आधार न हटेगा। तुम्हारा भवन गिर न सकेगा ।
तो मैं खोजे चला जाता हूं। मेरे साथ आखिरी में जो बच रहेगा- सभी झंझावातों को सहकर, सभी आंधियों को सहकर- - वह परीक्षा में पूरा उतरा । अगर तुम्हें होश हो, तो कोई कारण नहीं है कि तुम भी परीक्षा में क्यों न पूरे उतर जाओ । लेकिन जब तुम्हारे मत पर चोट पड़ती है, तब होश खो जाता है। तब आदमी बेचैन हो जाता है। क्योंकि यह मानना कि तुम कोई गलत चीज मानते थे, बड़ा मुश्किल होता है। तुम ! इतने बुद्धिमान और किसी गलत चीज को मानते थे! तुम्हें अपनी बुद्धिमानी पर शक नहीं आता ।
दूसरा प्रश्न :
समाजवाद के
हमें इन विरोधी
और धार्मिक व्यक्ति का वह बुनियादी लक्षण है । जिस बुद्धि को अपने पर शक आ गया, वह धार्मिक हो गयी। क्योंकि जिसे अपने पर संदेह आया, उसने ही अपने को बदला। संदेह ही न, तो बदलोगे क्यों? जिसने पहचानां कि मैं रुग्ण हूं, वही चिकित्सा की खोज में चला, औषधि की तलाश की।
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प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक एरिक फ्राम ने कहा है कि मनुष्य के मन में झांककर देखने के बाद मुझे आश्चर्य होता है कि मनुष्य समाज में मैत्री, प्रेम और दया दान के कृत्य भी होते हैं। कृपापूर्वक बताएं कि मनुष्य की वृत्तियों में कौन ज्यादा बुनियादी और बली है - प्रेम या घृणा, हिंसा या अहिंसा, सुख . या दुख ?
स तरह सोचना कि कौन ज्यादा बलवान है, प्रथम से ही गलत प्रश्न उठा लेना है। और अगर गलत प्रश्न पूछ लिया, तो फिर उत्तर गलत होते चले
जाते हैं।
कहते हैं, अच्छे होटलों में बैरा यह नहीं पूछता कि आप चाय लेंगे या नहीं ?
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