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________________ महोत्सव से परमात्मा, महोत्सव में परमात्मा कमजोर, बीमार, उसको वह उपवास करवा रहे हैं। फिर मैंने कहा, उपवास कभी ठीक भी हो सकता है, लेकिन इसकी हालत खराब है। और वे बोले कि हालत इसीलिए खराब है कि शरीर में विषाक्त द्रव्य हो गए हैं। टाक्सिक। उनको निकालना पड़ेगा, उपवास से ही निकल सकते हैं। और एलोपैथी की दवा तो मैं दूंगा नहीं, क्योंकि उसमें तो और जहर है। सिद्धांत मजबूत, पत्नी सूखती गयी। इधर मैं उनसे कहता भी कि पत्नी सूखती जा रही है, हालत उसकी खराब होती जा रही है। पर वे कहते कि जरा देखो तो उसके चेहरे पर कैसी कांति है! वह पीली पड़ रही, वे उसको कांति कहते हैं। ऐसे ही तो साधु-संन्यासियों के पास लोग जुड़े रहते हैं। उनका चेहरा पीला पड़ता जाता है, और भक्त कहते हैं, कैसी स्वर्ण जैसी तपश्चर्या प्रकट हो रही है। दूसरा देखेगा, तो उनको बीमार पाएगा, इलाज की जरूरत है। भक्त देखता है, तो वह कहता है, अहा! कैसा शुद्ध कुंदन जैसा चेहरा निकला आ रहा है। स्वर्ण प्रगट हो रहा है। नजरों में सिद्धांत छाए हों तो पीतल सोना मालूम होता है। । मैंने उनसे कहा, यह पत्नी मर जाएगी। न केवल उसका शरीर कमजोर हुआ, उसकी नींद भी खो गयी। क्योंकि भोजन की थोड़ी मात्रा नींद के लिए जरूरी है। जब शरीर में कुछ पचाने को न हो, तो शरीर को सोने की जरूरत नहीं रह जाती। जब नींद खो गयी, मैंने उनसे कहा, इसकी नींद खो गयी है। वे कहने लगे कि यह...यह तो हो जाता है जब आदमी शांत हो जाता है। तो ऐसा तो गीता में ही कहा है कृष्ण ने, या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी। यह पत्नी संयम को उपलब्ध हो रही है। उनको समझाना मुश्किल था। फिर पत्नी पागल भी हुई। मगर वे अपनी बकवास जारी रखे। पत्नी मर भी गयी। लेकिन सवाल सिद्धांत का था। ध्यान रखना, ऐसा ही धर्मों के जगत में चलता है। तुम्हें इसकी फिकर नहीं है कि परमात्मा मिले या न; अगर तुम मुसलमान हो तो कुरान के आसरे ही मिलना चाहिए। कुरान ज्यादा महत्वपूर्ण है। अगर तुम हिंदू हो तो गीता के सहारे ही मिलना ‘चाहिए। गीता ज्यादा महत्वपूर्ण है। अगर परमात्मा तुमसे कहता हो कि आज मैं कुरान के द्वारा मिलने को तैयार हूं, तो तुम कहोगे, हम मिलने को तैयार नहीं। हम तो गीता के सहारे ही आएंगे। कहते हैं, तुलसीदास कृष्ण के मंदिर में गए वृंदावन, तो उन्होंने कहा कि झुकुंगा नहीं, जब तक धनुष-बाण हाथ न लोगे। कृष्ण की मूर्ति थी, बांसुरी लिए। अब तुलसीदास झक सकते कहीं कृष्ण की मूर्ति के सामने, बांसुरी लिए! वे तो धनुर्धारी राम के भक्त हैं। जब तक धनुष-बाण हाथ न लोगे, झुकंगा नहीं। ___यह बात कैसी हुई! परमात्मा से कोई प्रयोजन नहीं है। तुम परमात्मा को भी अपने अनुशासन में रखना चाहते हो। तुम्हारे ढंग से आए तो झुकोगे। इसका अर्थ हुआ, तुम अपने ढंग के लिए झुकोगे, परमात्मा से कुछ लेना-देना नहीं। तुम 193
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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