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________________ एस धम्मो सनंतनो परमात्मा से कवायद करवाने को उत्सुक हो। यह कैसा अहंकार! नहीं, बुद्धि विवादी है। झगडैल है। ___ यहां मैं सभी रास्तों की बातें कर रहा हूं। क्योंकि मैं कहता हूं, चलो, गीता से न मिले, छोड़ो भी। गीता से क्या लेना-देना है! आम खाने से मतलब, गुठलियां गिनने से क्या प्रयोजन है। गीता से नहीं मिले, जाने दो, धम्मपद सही। चलो धम्मपद से खोज लें। अगर होमियोपैथी काम न आयी, तो एलोपैथी सही; एलोपैथी काम न आयी, तो नेचरोपैथी सही। पैथी से बंधने की जरूरत क्या है? जो पैथी से बंध गया, वह तो रोगी से भी महारोगी है। एक तो बीमारी पकड़े है, और अब चिकित्सा ने भी पकड़ा। सभी रास्तों से लोग पहुंचे हैं। मैं तुमसे सभी रास्तों की चर्चा कर रहा हूं। इसलिए नहीं कि तुम सभी रास्तों पर चलो। मैं कहता हूं, जब तुम्हें जो रास्ता जम जाए, तुम उस पर चल पड़ना। जिनके लिए तब तक न जमा होगा, उनके लिए मैं आगे बोलता चला जाऊंगा। इसलिए तम्हें मेरे वक्तव्यों में विरोध दिखायी पड़ेगा। क्योंकि मैं इतने विरोधी लोगों पर बोल रहा हूं। उनकी अभिव्यक्तियां इतनी भिन्न हैं। कहां बुद्ध, कहां क्राइस्ट! कहां कृष्ण, कहां महावीर! कहां पतंजलि, कहां तिलोपा! कहां शिव का विज्ञान भैरव, कहां लाओत्से का ताओ तेह किंग! इतने भिन्न लोग हैं, इतनी भिन्न सदियां, इतनी भिन्न अभिव्यक्तियां। लेकिन मेरी सारी चेष्टा तुम्हें बताने की यह है कि सबके भीतर एक की तरफ ही इशारे हैं। अंगुलियां अलग-अलग, चांद एक है। तो जब मैं लाओत्से की अंगली पकडकर उठाऊंगा चांद की तरफ. तो स्वभावतः वह अंगली वैसी ही नहीं होगी जैसी बुद्ध की अंगुली होगी। हो ही नहीं सकती। बुद्ध की अंगुली बुद्ध की अंगुली है। लाओत्से की अंगुली लाओत्से की अंगुली है। तुम अगर गौर से मुझे देखते रहे, तो तुम धीरे-धीरे पाओगे कि अंगुलियों का प्रयोजन ही नहीं है। अंगुलियां किस तरफ उठायी जा रही हैं-चांद की तरफ-उस तरफ देखो, अंगुलियों को भूलो। अगर तुमने चांद देखा, तो मेरे वक्तव्यों में तुम्हें एक धारा बहती हुई प्रवाहित मालूम होगी। अगर अंगुलियां देखीं, तो तुम मुश्किल में पड़ जाओगे। तो मेरे वक्तव्य तुम्हें अलग-अलग मालूम होंगे। __ चांद को देखना हो, तो तुम्हें मुझे बड़ी प्रेम की नजर से देखना होगा। विवाद की नजर लेकर तुम आए, तो शब्द दिखायी पड़ेंगे। क्योंकि विवाद शब्द को भी पकड़ ले, तो बहुत। शब्द भी छूट जाता है। विवादी का मन इतना आतुर होता है विवाद के लिए कि वह शब्दों को भी नहीं पकड़ पाता। उनको पकड़ लेता है जिनको विवाद के काम ला सकता है। उनको छोड़ देता है जो उसके काम के नहीं। जिनसे विवाद खड़ा हो सकता है, उनको पकड़ लेता है। जिनसे खड़ा नहीं हो सकता, उनको भूल ही जाता है। लेकिन, अगर तुमने प्रेम से मुझे सुना, जो कि जीवन को देखने का अलग ही, 194
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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