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महोत्सव से परमात्मा, महोत्सव में परमात्मा
होकर जलने लगे, प्रखर होकर जलने लगे, वही प्रेम प्रेम है। और वही प्रेम प्रार्थना बनेगा। और वही प्रेम तुम्हें एक दिन परमात्मा तक ले जाएगा। ___प्यास जब ऐसी हो जाए कि तुम मिट ही जाओ और प्यास ही बचे; बस प्यास बचे, तुम न बचो; एक व्याकुलता बचे, एक विरह बचे, एक उत्तप्त अभीप्सा बचे, तुम खो ही जाओ-प्यासा बचे ही न, क्योंकि प्यासे के कारण ही प्यास पूरी नहीं हो पाती। कुछ शक्ति प्यासे को मिलती है, कुछ प्यास को मिलती है, बंट जाती है। जब प्यास ही प्यास होती है और प्यासे के पास अपने को बचाने की शक्ति भी नहीं बचती, तभी प्यास प्रार्थना हो जाती है, तभी प्यास परमात्मा हो जाती है।
यहां तुम्हें मैं प्यास ही सिखा रहा हूं। यहां तुम्हें मैं इस बात के लिए तैयार कर रहा हूं, ताकि तुम अनंत प्यास के मालिक हो जाओ। भरने की जल्दी...थोड़ा सोचो, साधारण प्यास को आदमी मिटा लेना चाहता है, क्योंकि प्यास से पीड़ित है। परमात्मा की प्यास को मिटा थोड़े ही देना चाहता है, क्योंकि प्यास से पीड़ित थोड़े ही है। इसलिए नारद कहते हैं, विरहासक्ति। विरह में भी आसक्ति हो जाती है। रस आने लगता है प्यास में भी।
अगर तुम ठीक से समझो, तो ऐसा कहने दो मुझे कि प्यास के कारण थोड़े ही भक्त परमात्मा को मांगता है, परमात्मा को मांगता है, ताकि प्यास बढ़ती जाए। परमात्मा प्यास से गौण हो जाए। भक्ति भगवान से महत्वपूर्ण हो जाए। क्योंकि जब तक भक्ति साधन है, तब तक तो तुम छुटकारा चाहोगे कि जल्दी पूरा हो, रास्ता पूरा हो, मंजिल आए। जब भक्ति साध्य हो जाती है!
यहां तुम्हें मैं ऐसी ही प्यास की तरफ ले चला हूं। तो कितना समय तुम रहे, यह बात बड़ी सोच लेने जैसी है, ज्यादा समय रहे नहीं। यह प्रश्न पूछा है आनंद त्रिवेदी ने। माना बहुत वर्ष हो गए हैं; लेकिन फिर भी मैं तुमसे कहता हूं, अभी क्षण भी कहां बीते! अभी-अभी आए थे, अभी बैठे ही हो, अभी ज्यादा देर नहीं हुई, और तुम विचारोगे तो ऐसा ही पाओगे। अगर ज्यादा देर हो गयी, तो उठने का वक्त करीब आ गया। जब ज्यादा देर होने लगी, तो आदमी उठने की तैयारी करने लगता है। तुम और भी बैठे रहना चाहते हो, तुम रुके ही रहना चाहते हो। जब तक उठने की आकांक्षा खड़ी न हो जाए, जब तक यहां से दूर जाने की आकांक्षा न हो जाए, तब तक कहां देर हुई? अभी तुम ऊबे नहीं।
बुद्धि जल्दी ऊब जाती है। बुद्धि बड़ी छिछली है। उसमें कोई गहराई नहीं। शोरगुल बहुत है, जैसा उथली नदियों में होता है। हृदय कभी ऊबता नहीं, बड़ा गहरा है। पता भी नहीं चलता कि बह रहा है कि नहीं बह रहा है। धार बड़ी धीमी सरकती है।
पूछा है, 'मैंने समय-समय पर आपसे कई भिन्न-भिन्न वक्तव्य, परस्पर विरोधी वक्तव्य सुने हैं, लेकिन उनके संबंध में कभी कोई प्रश्न मेरे मन में नहीं उठा।' शुभ है। सौभाग्यशाली हो। बड़ा मंगल-सूचक है। ऐसा ही होना चाहिए। नहीं
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