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________________ एस धम्मो सनंतनो जिन्होंने मुझसे प्रेम किया है, उनके प्रश्न तो नहीं उठेंगे, जिज्ञासाएं होंगी । जिज्ञासा सत्य की खोज पर बड़ी जरूरी है। प्रश्न, विवाद करना हो, शास्त्रार्थ करना हो, तो काम के हैं। सत्य को खोजना हो, तो बाधाएं हैं। पूछा है, 'वर्षों से आपको सुन रहा हूं, लंबे अर्से से आपके पास हूं।' इससे कोई फर्क न पड़ेगा। तुम जितनी ज्यादा देर मेरे पास रह जाओगे उतना ही लगेगा कम रहे। यह कुछ प्रेम ऐसा है कि बढ़ने ही वाला है, घटने वाला नहीं। जो घट जाए, वह भी कोई प्रेम ! यह चांद कुछ ऐसा है कि बढ़ता ही चला जाता है। पूर्णिमा कभी आती नहीं, बस आती मालूम होती है। प्रेम के रास्ते की यही खूबी है। पांव बढ़ते हैं, लक्ष्य उनके साथ बढ़ता है। पांव बढ़ते लक्ष्य उनके साथ बढ़ता और पल को भी नहीं यह क्रम ठहरता पांव मंजिल पर नहीं पड़ता किसी का प्यार से, प्रिय, जी नहीं भरता किसी का जिससे जी भर जाए, वह प्रेम नहीं। जिससे जी भरे ही न, वही प्रेम है। भर-भर कर न भरे। बार-बार तुम लगो कि अब लबालब हुए, अब लबालब हुए, जब झांको, तब पाओ कि अभी और जगह रह गयी, अभी और भरना है। मंजिल सदा पास आती लगती है— हाथ बढ़ाया, मिल जाएगी; पर पांव मंजिल पर कभी नहीं पड़ता । तुम जितनी ज्यादा देर मेरे पास रह जाओगे, उतना ही लगेगा, कम रहे। समय सिकुड़ता जाएगा। प्रेम के सामने समय छोटा है। समय कैसे बीत जाता है प्रेम की घड़ी में, पता नहीं चलता । 1 तुमने कभी खयाल किया ? तुम प्रेमी के पास बैठे हो, घंटों बीत जाते हैं, ऐसा लगता है, पल ही बीते । और तुम किसी दुश्मन के पास बैठे हो; पल बीतते हैं और ऐसा लगता है, घड़ी मानो ठहर गयी। घंटों बीत गए । दुख में समय लंबा हो जाता है। सुख में समय छोटा हो जाता है। इसीलिए तो कहते हैं, नर्क अनंत है। दुख में समय लंबा हो जाता है। इसीलिए तो कहते हैं, स्वर्ग क्षणभंगुर है। सुख में समय छोटा हो जाता है। आया नहीं, गया नहीं। और आनंद में तो समय परिपूर्ण शून्य हो जाता है । इसीलिए आनंद को कालातीत कहा है। फिर से तुम सोचना, कितने समय तुम मेरे पास रहे? बहुत थोड़ा मालूम पड़ेगा । अगर गौर से देखोगे, तो शायद तिरोहित ही हो जाएगा कि रहे ही कहां! अभी आए थे; क्षण भी नहीं बीता; या क्षण कहना भी ठीक नहीं, कुछ बीतता नहीं मालूम पड़ता; कुछ ठहरा हुआ मालूम पड़ता है। इसलिए तुम जितनी ज्यादा देर रह जाओगे, उतना ही लगेगा, कम रहे, कम रहे, कम रहे। यह जल कुछ ऐसा है कि पीने से प्यास बढ़ती है। जिस प्रेम से प्यास बुझ जाए, वह प्रेम नहीं। जिस प्रेम से प्यास अनंत 190
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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