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________________ महोत्सव से परमात्मा, महोत्सव में परमात्मा छोड़कर, त्यागकर, मस्जिद में नमाज पढ़ने को कहा है; कभी भगवान के रस में डूबकर नाचने को कहा है, मदमस्त होने को कहा है; कभी, भगवान है ही नहीं, सब सहारे छोड़ देने को, आत्मखोज के लिए कहा है। स्वभावतः, ये वक्तव्य विरोधी हैं। लेकिन इन सब विरोधों के भीतर मैं हूं। जिसने तुमसे पूजा के लिए कहा था, उसी ने तुमसे पूजा छोड़ने को कहा है। और जिस लिए तुमसे पूजा करने को कहा था, उसी लिए तुमको पूजा छोड़ने को कहा है। मैं वही हूं और मेरा प्रयोजन वही है। __ अगर तुमने प्रेम से मुझसे संबंध जोड़ा, तो तुम देख पाओगे। तुम्हें यह स्पष्ट होगा। तब तुम जन्मों-जन्मों मेरे साथ रहो और तुम्हारे भीतर कोई प्रश्न न उठेगा। यह शुभ है। यह महिमापूर्ण है। प्रेम ने कभी कोई प्रश्न जाना ही नहीं। हां, कभी जिज्ञासा उठ सकती है। जिज्ञासा बड़ी और बात है। इस फर्क को भी खयाल में ले लेना चाहिए। प्रश्न तो उठता है तुम्हारी जानकारी से। तुम कुछ जानते हो, उससे प्रश्न खड़ा होता है। जिज्ञासा उठती है अज्ञान से। तुम नहीं जानते, इसलिए प्रश्न खड़ा होता है। तुमने वेद पढ़ा, फिर मैंने कुछ कहा, और अगर तुमने जो वेद में पढ़ा है उसके विपरीत हुआ, तो प्रश्न उठेगा। तुमने गीता पढ़ी, और मैंने कुछ कहा, और तुम्हारी पढ़ी हुई गीता से मेल न खाया, तो प्रश्न उठेगा। प्रश्न तुम्हारे ज्ञान से उठता है, तुम्हारी सूचना से, जानकारी से उठता है। प्रश्न का केवल इतना अर्थ है कि तुम्हारा ज्ञान डगमगाया। तुम उसे थिर करना चाहते हो। तुम बेचैनी में पड़ गए, असुरक्षित हो गए। सब साफ-सुथरा मालूम होता था, भ्रम खड़ा हो गया। मैंने कुछ कहा, उसने तुम्हें डांवाडोल किया। तुम थिर होना चाहते हो। तुम प्रश्न पूछते हो-इस पार, या उस पार। या तो मैं तुम्हें बिलकुल ही गलत सिद्ध कर दं, ताकि तुम मुझे ठीक मान लो और या मैं गलत सिद्ध हो जाऊं, ताकि तुम अपने ठीक को ठीक माने चले जाओ। प्रश्न तुम्हारे ज्ञान में बाधा पड़ने से उत्पन्न होता है। जिज्ञासा अज्ञान से पैदा होती है। छोटा बच्चा पूछता है, तब जिज्ञासा है। उसे कुछ पता नहीं। वह पूछता है, संसार को किसने बनाया? एक हिंदू पूछता है, संसार को किसने बनाया? वह जानकर ही पूछ रहा है। वह यह पूछ रहा है कि मैं तो मानता हूं कि ईश्वर ने बनाया, तुम भी मानते हो या नहीं? किसने बनाया संसार को? उसके प्रश्न के पीछे जानकारी खड़ी है। एक छोटा बच्चा पूछता है, किसने बनाया? उसके प्रश्न के पीछे कोई जानकारी नहीं है, विराट जिज्ञासा है। वह कुछ मानकर नहीं पूछ रहा है। इसलिए उसके पूछने में एक निर्दोष भाव है। वह जानना चाहता है, इसलिए पूछ रहा है। तुम जानते ही हो, इसलिए पूछते हो। तो तुम जब भी पूछते हो, तुम्हारा प्रश्न एक तरह का विवाद है। 189
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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