________________
एस धम्मो सनंतनो
तो अनंत रास्तों की बातें हैं। विरोध ही विरोध मिलेगा। ऐसा मैंने कोई वक्तव्य ही नहीं दिया है जिसका हजार बार खंडन न किया हो। तो यदि बुद्धि से मेरे पास हो, तो दो ही उपाय हैं। या तो तुम पागल हो जाओगे, बुद्धि को छोड़ दोगे। या भाग जाओगे। ___ बुद्धि को बचाना है, तो मुझे छोड़ना पड़े। मुझे बचाना है, तो बुद्धि छोड़नी पड़े।
और कोई सौदा, और कोई समझौता नहीं हो सकता। इसलिए बहुत से बुद्धिवादी मेरे पास आते हैं, हट जाते हैं। उनको अपनी बुद्धि ज्यादा मूल्यवान मालूम होती है। वह उनका निर्णय। __उन्हें मैं बहुत बुद्धिमान नहीं कहता। क्योंकि वे उसी बुद्धि को पकड़ रहे हैं जिस बुद्धि से कुछ भी नहीं पाया। इधर मैंने एक मौका दिया था निर्बुद्धि होने का। एक द्वार खोला था-अनजान, अपरिचित। हिम्मत होती और दो कदम चल लेते, तो कुछ पा जाते। कोई झलक मिलती, कोई जीवन का स्वाद उतरता। लेकिन घबड़ाकर उन्होंने अपनी बुद्धि की पोटली बांध ली। भाग खड़े हुए। उसी को बचा लिया जिसके सहारे कुछ भी नहीं पाया था। इसलिए मैं उन्हें बहुत बुद्धिमान नहीं कहता।
जो सच में बुद्धिमान हैं, उन्हें मेरी बातों में विरोधाभास दिखायी पड़ेंगे, तो भी मेरी बातों का रस विरोधाभासों के बावजूद उनके हृदय को आंदोलित करता रहेगा। एक न एक दिन हिम्मत करके वे अंधेरे में मेरे साथ कदम उठाकर देखेंगे। उसी दिन उनके भीतर क्रांति हो जाएगी। उनकी चेतना की धारा बुद्धि से छिटककर हृदय के मार्ग पर बहने लगेगी। वही एकमात्र क्रांति है।
तो जो बुद्धि से मेरे पास आए हैं, या तो रुकना है तो बुद्धि खोनी पड़ेगी। वही मूल्य चुकाना पड़ेगा। अपनी बुद्धि बचानी है, तो मुझे खोना पड़ेगा। फिर तुम्हारी मर्जी। दूसरा जो वर्ग है, जो हृदय के कारण मेरे पास आया है। जो मुझे सुनकर नहीं, मुझे सोचकर नहीं, मुझे देखकर, मुझे अनुभव कर मेरे पास आया है; जिसने धीरे-धीरे मेरे साथ एक प्रेम का नाता बनाया है—वह नाता बौद्धिक नहीं है। उस नाते में, मैं क्या कहता हूं, कुछ लेना-देना नहीं है। मेरी मान्यताएं क्या हैं, उनका कोई विचार नहीं है। मैं क्या हूं, वही मूल्यवान है—उनके ऊपर मैं कितने ही विरोधी वक्तव्य देता चला जाऊं, कोई अंतर न पड़ेगा। उन्होंने अपने भीतर से जो मेरा साथ जोड़ा है, वह अविरोध का है, हृदय का है।
बुद्धि सोचती है, कौन सी बात ठीक, कौन सी बात गलत। बुद्धि सोचती है, कौन सी बात किस बात के विपरीत पड़ रही है। बुद्धि सोचती है, कल मैंने क्या कहा था, आज मैं क्या कह रहा हूं। बुद्धि हिसाब रखती है। हृदय तो क्षण-क्षण जीता है। अतीत को जोड़कर नहीं चलता। मैंने कल क्या कहा था, उससे प्रयोजन नहीं है। मैं कल क्या था, उससे प्रयोजन है। और जो मैं कल था, वही मैं आज हूं। मेरे वक्तव्य बदलते जाएं, मेरे शब्द बदलते जाएं, मेरा शून्य वही का वही है।
कभी मैंने तुमसे मंदिर में जाकर प्रार्थना करने को कहा है; कभी सब मूर्तियों को
188