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एस धम्मो सनंतनो
नहीं सिखा रहे हैं। वे यह नहीं कह रहे हैं कि कठोर वचन मत बोलो, दिल ही दिल में जितना आए करो, जैसा आए करो। सोचो खूब, बोलो मत। ___ नहीं, सोचा तो भी बोल ही दिया। जो विचार तुम्हारे भीतर बन गया, वह प्रगट हो गया। जिस विचार का तुम्हारे भीतर तुम्हें अनुभव हो गया, वह दूसरे तक भी पहुंच ही गया। पता न चले, आज साफ न हो, कल साफ होगा। तुमने अगर किसी के संबंध में क्रोध भरी बातें सोच लीं, फिर तुम कहो या न कहो, वे बातें किसी अनजान रास्ते से पहुंच ही गयीं। हम सब जुड़े हैं, हम सब के तार एक-दूसरे से हिलते हैं। हम अलग-अलग नहीं हैं। ___ इसलिए कठोर वचन मत कहो, कठोर वचन बनाओ भी मत। असल में उस दृष्टि को छोड़ दो जो तुम्हें कठोर बनाती है। उस जीवन-शैली को त्याग दो जो तुम्हें कठोर बनाती है। विनम्र हो रहो। विनीत हो रहो। कोमल अपने हृदय को बनाओ। तुम्हारे भीतर से कोमल स्वर ही उठे। उन स्वरों के आधार से तुम्हारे आसपास का सारा जगत रूपांतरित होने लगेगा। तुम स्वर्ग में यहीं और अभी हो सकते हो, सिर्फ तुम्हारे स्वर कोमल होने चाहिए।
है सदाकत के लिए जिस दिल में मरने की तड़प
पहले अपने पैकरे-खाकी में जां पैदा करे और जिसके मन में सदाचरण की अभीप्सा हो, जो चाहता हो फूल खिलें जीवन में आचरण के, सुगंध हो, सुवास हो, तो पहले
पहले अपने पैकरे-खाकी में जां पैदा करे तो पहले अपनी मिट्टी की देह में आत्मा को जगाए, पैदा करे। .
अभी तो हम साधारणतया मिट्टी के ही शरीर हैं। जब तक तुम्हारी अपनी आत्मा से पहचान नहीं, तब तक आत्मा है या नहीं, क्या फर्क पड़ता है? ऐसा समझो कि तुम्हारे घर में खजाना गड़ा है और तुम्हें पता नहीं, तो तुम गरीब ही हो। खजाने गड़े होने से क्या होगा? अमीर तो तुम न हो जाओगे। यद्यपि खजाना गड़ा है, होने चाहिए थे अमीर, लेकिन होओगे तो तुम गरीब ही। खजाना खोदना पड़े। ___ गुरजिएफ कहता था, जब तक तुमने आत्मा नहीं जानी, तब तक यह मानना फिजूल है कि आत्मा है। गुरजिएफ कहता था कि आत्मा के सिद्धांत ने बहुत लोगों को गलती में उलझा दिया है। पढ़ लेते हैं उपनिषद में, गीता में कि आत्मा है। मान लेते हैं कि बस खतम हो गयी, आत्मा है।
खोजना पड़ेगी। गुरजिएफ कहता था, ध्यान रखो, आत्मा तभी होगी जब तुमने खोजी। खजाना दबा पड़ा रहे जमीन में हजारों वर्ष तक, इससे क्या होगा? उपयोगिता क्या है ? खोजो। आत्मा खोज से मिलती है। निर्माण करो। जगाओ। ___'यदि तुमने टूटे हुए कांसे की भांति अपने को निःशब्द कर लिया तो तुमने निर्वाण प्राप्त कर लिया, क्योंकि तुम्हारे लिए प्रतिवाद नहीं रहा।'
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