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आज वनकर जी!
शायद ज्यादा भी हों, लेकिन तुम्हारे जीवन में ज्यादा से ज्यादा मनकों का ढेर होता है, माला नहीं होती। तुम सूत्र नहीं खोज पाते।
इसीलिए तो हम इन गहरे वचनों को सूत्र कहते हैं। सूत्र का अर्थ है, धागा। सूत्र का अर्थ है, सार। सूत्र का अर्थ है, हजार अनुभव हों, सूत्र तो जरा सा होता है उनके भीतर। ..
मीर का बड़ा प्रसिद्ध वचन है। बुढ़ापे में किसी ने मीर से पूछा कि तुम इतने अदभुत काव्य को कैसे उपलब्ध हुए, तो मीर ने कहा
किस किस तरह से उम्र को काटा है मीर ने
तब आखिरी जमाने में यह रेख्ता कहा पूरी जिंदगी किस-किस तरह से काटी है, तब कहीं यह कविता पैदा हुई।
यह बुद्ध ने जो वचन कहा है, यह किन्हीं नीतिशास्त्रों से उधार नहीं लिया है, यह उनके अपने जीवन का निचोड़ है।
मालूम हैं मुझको तेरे अहवाल, कि मैं भी
मुद्दत हुई गुजरा था इसी राहगुजर से वे आदमी को समझते हैं, क्योंकि वे भी आदमी थे। इसी राहगुजर से गुजरे हैं। इसी यात्रा की धूल खायी है। इसी क्रोध, लोभ, मोह, दुख, सुख के मेले से गुजरे हैं। इन्हीं सारे अनुभवों को अनुभव किया है। इनके कांटे उन्हें चुभे हैं। ___ 'कठोर वचन मत बोलो, बोलने पर दूसरे भी तुम्हें वैसा ही बोलेंगे। क्रोध-वचन दुखदायी है, उसके बदले में तुम्हें दुख ही मिलेगा।' ।
वचन की ही बात नहीं, समझ की बात है। क्योंकि तुम जो बोलते हो, इतना ही काफी नहीं है कि तुम न बोलो। अगर तुमने भीतर भी बोल लिया, तो भी तुम दुख पाओगे। क्योंकि जब तुम्हारे भीतर क्रोध से भरी कोई स्थिति उठती है, तुम्हारे चारों तरफ की तरंगें उससे प्रभावित हो जाती हैं। जरूरी नहीं है कि तुम वचन बनाओ तभी। क्रोधी आदमी के आसपास की हवा में क्रोध फैल जाता है। क्रोधी आदमी के पास तुम जाओगे तो अचानक तुम पाओगे कि तुम्हारे भीतर क्रोध जग रहा है। ___ यह तुम्हें कई बार अनुभव होता है, पर तुम खयाल नहीं करते। शांत आदमी के पास जाते हो, अचानक लगता है, हवा का एक झोंका आ गया, कोई चीज शीतल हो गयी भीतर। मौन आदमी के पास जाते हो, तुम्हारे भीतर के विचार भी शिथिल हो जाते हैं, धीमे पड़ जाते हैं, दौड़ कम हो जाती है।
सत्संग का यही अर्थ है : किसी ऐसे व्यक्ति के पास, जो पहुंच गया हो। उसके पास होना भी बहुमूल्य है। कुछ करने की बात नहीं है। सिर्फ उसके पास होना भी, उसकी हवा को पीना भी, जो श्वासें उसके हृदय को छूकर आयी हों, उन श्वासों को अपने भीतर ले लेना भी तरंगों को बदलता है; तुम्हारी चित्तदशा को बदलता है।
तो इतना ही नहीं है कि तुम कठोर वचन मत बोलो। बुद्ध तुम्हें कोई कूटनीति
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