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________________ एस धम्मो सनंतनो है कि तुम इसे तौल नहीं पाते। ___ इसीलिए दुनिया में बड़े पाप चलते रहते हैं। छोटे पाप से हम बड़े बेचैन हो जाते हैं। बड़ा पाप हमें इतना चौंका देता है, लेकिन हमसे इतना बड़ा होता है कि हम करीब-करीब अपाहिज लकवा मार गया हो-ऐसी हालत में रह जाते हैं। हमसे कुछ करते नहीं बनता। छोटे पापी पकड़े जाते हैं, बड़े पापी सम्मानित होते हैं। किसी आदमी ने किसी की चोरी कर ली, बस। पकड़ा गया। किसी आदमी ने किसी को मार डाला, पकड़ा गया। लेकिन हिटलर, नेपोलियन, सिकंदर-तुम पूजा करते हो। करोड़ों लोग मार डाले। पर तुम्हारी सीमा के बाहर हो गया। हिटलर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है : छोटे पाप मत करना, लोग पकड़ लेते हैं। करना हो तो बड़े करना। ___मैं तुमसे कहता हूं, छोटी झूठ मत बोलना, पकड़ जाओगे। बड़ी बोलना। इतनी बड़ी बोलना कि लोगों की पकड़ के बाहर हो। फिर तुम नहीं पकड़े जाओगे। छोटे पापी कारागृहों में बंद हैं, बड़े पापी इतिहास की स्वर्ण-जिल्दों में विश्राम कर रहे हैं। स्वर्ण-अक्षरों में उनके नाम लिखे हैं। आदमी की इस सतत बेईमानी की प्रवृत्ति के प्रति होश रखना। 'कठोर वचन मत बोलो, बोलने पर दूसरे भी वैसा ही तुम्हें बोलेंगे। क्रोध-वचन दुखदायी होता है, उसके बदले में तुझे भी दंड मिलेगा।' 'कठोर वचन मत बोलो, बोलने पर दूसरे भी वैसा ही तुम्हें बोलेंगे।' । इसीलिए मैं कहता हूं, बुद्धपुरुष स्वार्थ सिखाते हैं। अब यह बात सीधी स्वार्थ की है। कठोर वचन मत बोलो, अन्यथा तुम दूसरों को निमंत्रण दे रहे हो कठोर वचन बोलने के लिए। निंदा मत करो, अन्यथा दूसरे निंदा करेंगे। गाली मत दो, अन्यथा गाली वजनी होकर वापस लौटेगी। और जहरीली होकर वापस लौटेगी। बुद्ध इतना ही कह रहे हैं कि तुम थोड़ी तो समझ रखो अपने स्वार्थ की। तुम वही करो जो तुम चाहते हो तुम पर बरसे। यह बड़े अनुभव से बुद्ध ने कहा है। यह उनके जीवनभर का सार-अनुभव है। यह तुम्हारा भी अनुभव है, लेकिन तुमने कभी इसे निचोड़कर सिद्धांत नहीं बनाया। ___ तुमने कितनी बार गाली दी है, गाली देकर तुमने कभी प्रत्युत्तर में फूलमालाएं पायीं? तुमने कितनी बार कठोर वचन बोले हैं, उत्तर में तुम पर नवनीत बरसा? कितनी बार तुम्हारे जीवन में यह घटा है। अगर तुम ठीक से समझो तो बुद्धों के जीवन में तुमसे भिन्न कुछ भी नहीं घटता। जो तुम्हारे जीवन में घटता है, वही उनके जीवन में घटता है। भेद क्या है? भेद इतना है कि वे अनंत-अनंत घटनाओं से सिद्धांत खोज लेते हैं। तुम अनंत घटनाओं में ही जीते रहते हो, सिद्धांत नहीं खोज पाते। बुद्धपुरुष अपने जीवन के अनुभव की माला गूंथ लेते हैं। बहुत से मनकों के भीतर सिद्धांत का एक धागा पकड़ लेते हैं। तुम्हारे जीवन में भी उतने ही अनुभव हैं, 178
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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