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________________ आज बनकर जी ! होंगे, मगर निर्णय ? निर्णय होना बहुत मुश्किल है । और एक दिन में ! आदमी उपाय खोज लेता है। मौत के बाद ! तो आदमी सोचता है, पहले तो यह कि मौत के बाद बचता है कोई ? किसी ने लौटकर कहा ? कौन कब लौटकर आया है? बातें हैं। मिट्टी मिट्टी में गिर जाती है, हवा हवा में खो जाती है, कौन बचता है ? आधी दुनिया तो नास्तिक है, मानती है, शरीर सब कुछ है। इसके पार कुछ भी नहीं है । फिर कौन जानता है कि बचने पर भी बेईमान कोई रास्ता न खोज लेंगे? अगर उन्होंने यहां रास्ता खोज लिया, तो वहां क्यों न खोजेंगे ? फिर कौन जानता है कि बेईमानों के वकील न होंगे? और फिर जब सभी लोग इस बड़ी नाव में सम्मिलित हैं— कोई अकेले तो हम बैठे नहीं - जो सबका होगा, वह हमारा होगा। तो मैं तुमसे कहता हूं, बुद्ध ने कहा कि मरकर, ताकि तुम इस प्रश्न में न उलझो कि आज तो नहीं हो रहा है! लेकिन तब आदमी ने उपाय खोज लिया कि मरकर होगा, कोई फिकर नहीं, देख लेंगे। 1 आदमी की सीमा है सोचने की। इसीलिए तो आदमी मजे से जीए चला जाता खड़ी है सबके द्वार पर, लेकिन कल्पना की सीमा है । अगर तुमसे कोई कहे, कल मर जाओगे, तो थोड़ा धक्का लगता है। कोई कहे, परसों । धक्का कम हो जाता है। सीमा बड़ी हो गयी। कोई कहता है, दस साल बाद। तुम सोचते हो, दस साल ? बड़ा लंबा है। सत्तर साल बाद, बात ही खतम हो गयी। मरे, न मरे, बराबर मालूम होता है। सत्तर साल! आदमी की सीमा है। तुमने कभी खयाल किया, आदमी के मन का गणित और मन की परिकल्पना बड़ी सीमित है। तुमसे अगर कोई कहे कि एक आदमी मर गया, किसी ने गोली मार दी, तुम्हारे मुंह से आह निकल जाती है । फिर कोई आदमी कहता है, हिरोशिमा पर एटम गिरा, एक लाख आदमी मर गए। एक लाख गुनी थोड़े ही आह निकलती है ! तुमने सोचा? क्या, मामला क्या है? एक आदमी मर गया । आह निकल जाती है। एक लाख आदमी! तुम्हारी सीमा के बाहर पड़ गए। तुम्हारी कल्पना से बहुत ज्यादा हो गए। अब तुम हिसाब नहीं लगा पाते। फिर दस करोड़ आदमी मर गए - बात ही खतम हो गयी। कैसे सोचोगे दस करोड़ आदमी के मरने का दुख ? एक आदमी की मौत तुम्हें ज्यादा छूती है, दस करोड़ की कम छूती है। इसीलिए तो दुनिया में छोटे पाप रुकते जाते हैं, बड़े पाप बढ़ते जाते हैं। क्योंकि बड़े पाप को समझने की कल्पना नहीं है। उसके लिए उतनी संवेदनशीलता नहीं है। युद्ध होता है, किसी को कोई खास अड़चन नहीं होती, लाखों लोग मर जाते हैं। और छोटी-छोटी बातों पर लोग उलझे रहते हैं । एक भिखमंगा भूखा सड़क पर मरता हो तो तुम्हें दया आ जाती है। लेकिन कहीं भूकंप होता है और लाखों आदमी मर जाते हैं; अकाल पड़ता है, करोड़ों आदमी मर जाते हैं - तुम खड़े रह जाते हो । तुम्हें कुछ छूता नहीं, तुम्हारी संवेदनशीलता छोटी पड़ जाती है। यह दुख इतना बड़ा 177
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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