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________________ एस धम्मो सनंतनो जरूरी हैं, उपयोगी हैं, लेकिन सत्य नहीं। सत्य तो दोनों के भीतर कुछ है, जो जुड़ा है। समाया है जब से तू नजरों में मेरी जिधर देखता हूं उधर तू ही तू है एक बार तुम्हारी पहचान उस स्वभाव से हो जाए, तो तुम जहां भी देखोगे खोज ही लोगे उसे। हर बूंघट में वही है, हर पर्दे में वही है। खूब उसने रंग लिए हैं, खूब रूप लिए हैं। बुद्ध उसकी बात नहीं करते। क्योंकि परमात्मा के नाम से बुद्ध के समय तक बड़ा उपद्रव हो चुका था। मजबूरी में उन्हें उस प्यारे शब्द को त्याग देना पड़ा, छोड़ देना पड़ा। उन्होंने परमात्मा के बिना परमात्मा तक जाने की यात्रा का आयोजन किया। परमात्मा की तरफ जाने वाली यात्रा, और परमात्मा के शब्द को छोड़कर ले जाना चाहा। क्योंकि उस शब्द के कारण बहुत से रुके थे, जा नहीं रहे थे। शब्द ही बाधा बन गया था। 'जो सुख चाहने वाले प्राणियों को अपने सुख की चाह से दंड से मारता है, वह मरकर सुख नहीं पाता।' अगर तुम अपने सुख के कारण किसी को दुख दे रहे हो, तो तुम अपना दुख इकट्ठा कर रहे हो। इसे तुम गणित का आखिरी नियम समझो-जीवन के गणित का। इस नियम से बचने का कोई भी उपाय नहीं है। इसलिए बचने की व्यर्थ कोशिश ही मत करना। __ जब भी तुम किसी को दुख दोगे, तुम दुख पाओगे। मुझे ऐसा कहने दो : तुम जो दोगे, वही तुम पाओगे। संसार प्रतिध्वनि है। तुम गीत गाओगे, चारों तरफ से गीत प्रतिध्वनित होकर तुम पर बरस जाएगा। संसार दर्पण है। तुम्हारा चेहरा ही तुम्हें बार-बार दिखायी पड़ेगा। अगर सुख चाहते हो, तो दुख तो देना ही मत। अगर सुख चाहते हो, तो सुख देने की प्रार्थना करना, सुख देने की अभीप्सा करना। अगर लगे कि यह तो हमसे न हो सकेगा, बहुत दूर है, तो कम से कम दुख तो मत देना। न्यूनतम धर्म: दूसरे को दुख मत देना। अधिकतम धर्मः दूसरे को सुख देना। यह बारहखड़ी का प्रारंभ कि दूसरे को दुख मत देना, यह सारी भाषा का अंत कि दूसरे को सुख देना। जहां बुद्ध शुरू होते हैं, वहीं से शुरू करो, तो किसी दिन जहां जीसस पूर्ण होते हैं, तुम भी पूर्ण हो सकोगे। और जिसके जीवन में यह एक नियम साफ-साफ हो जाए, उसके जीवन में फिर किसी और चिराग की, किसी और दीए की जरूरत नहीं। जिसने इतना ही समझ लिया, उसने सब समझ लिया। और इसको जिसने साध लिया, उसके जीवन में कोई भूल-चूक न होगी। दूसरे को वही देना जो तुम चाहते हो कि तुम्हें मिले। तुमसे कभी भूल न होगी। 174
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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