SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आज बनकर जी! __ इस बात को ठीक से समझ लेना। आत्मघात करने वाले लोग यह नहीं बताते कि वह जीवन के प्रति उनका लगाव नहीं है, इतना ही बताते हैं कि बहुत लगाव था, जरूरत से ज्यादा लगाव था। इतना ज्यादा लगाव था कि हर तरह के जीवन के साथ वे राजी न हो सके। अगर जीवन ने उनकी मांग पूरी न की तो वे क्रोधित हो उठे। उन्होंने जीवन को तोड़ देना पसंद किया। और इसीलिए एक और महत्वपूर्ण घटना समझ में आ सकती है। दस लोग आत्महत्या का उपाय करते हैं, एक मरता है। नौ असफल हो जाते हैं। यह जरा सोचने जैसा है। आत्महत्या जैसी चीज, उसमें लोग असफल क्यों हो जाते हैं? आत्महत्या जैसी चीज में असफल होने का क्या! कोई बाधा भी नहीं डाल रहा। लेकिन बहुत गहरी खोजों से पता चला है, लोग असफल होना चाहते हैं। स्त्रियां गोलियां खाती हैं, लेकिन इतनी ही खाती हैं जिनसे कि अस्पताल तक पहुंच जाएं और वापस आ जाएं, इससे ज्यादा नहीं खाती हैं। लोग जहर पी लेते हैं, लेकिन इतना ही पीते हैं जिससे बचाया जा सके-समय रहते बचाया जा सके। लोग फांसी का फंदा भी लगाते हैं तो आशा रखते हैं कि मोहल्ले-पड़ोस के लोग आते ही होंगे। कोई न कोई आ जाएगा, बचा लेगा। इसलिए दस लोग कोशिश करते हैं, नौ असफल होते हैं। एक सफल होता है। वह भी, ऐसा लगता है, भूल से सफल हो जाता है। असफल होना चाहा होगा उसने भी, न हो पाया। जोश-खरोश में कुछ ज्यादा कर गया। इसीलिए तो लोग मरने की बातें करते रहते हैं। मेरे पास बहुत लोग आते हैं, वे कहते हैं कि मर जाना है। फिर तुम्हें कौन रोक रहा है? मैंने तो नहीं रोका। तुम मुझे कहने क्यों आए हो? मर जाने वाले को कौन रोक सकता है? कैसे रोक सकता है? कानून रोक सकता है मर जाने वाले को? जिसको मर ही जाना है, उसको कानून कैसे रोक सकेगा? कानून भी बड़ी मजाक है। कानून है कि अगर तुम आत्महत्या करते पकड़े गए, तो सजा हो जाएगी, फांसी लगा दी जाएगी। बड़े मजे की बात है। आत्महत्या करते अगर पकड़े गए, तो फांसी हो जाएगी; तुम अगर बचे, तो सरकार न बचने देगी। पर आत्महत्या जैसी सरल चीज-गए, पहाड़ से कूद गए; कि ट्रेन के नीचे लेट गए—इतनी सरल चीज सफल नहीं हो पाती। तुम्हारे भीतर कोई चीज उसे सफल नहीं होने देती। और जिनकी सफल हो जाती है, अगर उनकी आत्माएं बुलायी जा सकें और उनसे पूछा जा सके, तो वे कहेंगे, जरा हम जरूरत से ज्यादा कर गए। बीस गोलियां ले लीं, दस ही लेनी थीं। कुछ अंदाज न था, पुराना कुछ अनुभव न था। सोचा था, मोहल्ले-पड़ोस के लोग आ जाएंगे, लेकिन मोहल्ले-पड़ोस के लोग बाहर गए थे। सोचा था, पति रात होते-होते घर लौट आएगा, लेकिन वह रातभर घर न लौटा। कुछ आकस्मिक बाधा आ गयी, इसलिए सफल हो गए। 171
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy