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एस धम्मो सनंतनो
पाना चाहता है, न कोई दुखी होना चाहता है; लेकिन कुछ लोग आत्मघात कर लेते हैं - इनका क्या ? और इनकी संख्या थोड़ी नहीं है । करते तो बहुत लोग हैं, सफल नहीं हो पाते यह दूसरी बात है। दस में से एक सफल होता है।
इस पर थोड़ा विचार करें। क्या बुद्ध का वचन आत्मघातियों के लिए लागू नहीं होता ?
लागू नहीं होता, ऐसा लगेगा ऊपर से । भीतर खोजने पर पता चलेगा कि आत्मघात भी लोग जीवन के विरोध में नहीं करते, जीवन के लिए करते हैं । आत्मघातियों से पूछो — और कभी-कभी तुम्हारे मन में भी आकांक्षा उठी है आत्मघात करने की। ऐसा आदमी खोजना कठिन है जिसको न उठी हो । कभी न कभी, किन्हीं क्षणों में, दुर्दिनों में, दुखद घड़ियों में, अंधेरी रात में, किसी पीड़ा में, किसी संताप में क्षणभर को एक बात ने मन को पकड़ लिया है कि अब समाप्त ही कर दो। ऐसे जीवन से क्या लाभ? इस जीवन को छोड़ो।
लेकिन खयाल करना, उस आकांक्षा में भी जीवन को बेहतर करने की आकांक्षा छिपी है। यह जीवन नहीं जंच रहा है, क्योंकि तुम्हारी जीवन की आकांक्षा कुछ और बड़े जीवन की थी। तुमने चाहा था किसी स्त्री के साथ जीवन हो, वह न हो सका । तुमने चाहा था किसी पुरुष के साथ जीवन हो, वह न हो सका। तुमने जीवन के साथ शर्त रखी थी, वह शर्त पूरी न हो सकी, इसलिए अब तुम जीवन को समाप्त करना चाहते हो। यह क्रोध है । इस जीवन को विनष्ट करने की आकांक्षा में भीतर जीवन की ही लालसा है।
यह ऐसे ही है जैसे कि तुमने कभी देखा हो, किसी स्त्री को पड़ोस की कोई पड़ोसिन आकर उसके बच्चे का विरोध कर देती है, वह बरदाश्त नहीं करती कि उसके बच्चे ने कोई गलती की, लेकिन वह बच्चे की पिटाई कर देती है। तुमने कभी बच्चे को देखा, वह किसी खिलौने से बहुत मोह में पड़ा है, और तुम बहुत ज्यादा उससे मोह छोड़ने को कहते हो, वह खिलौने को पटककर जमीन पर तोड़ देता है। यह मोह के विपरीत नहीं है, यह मोह की घोषणा है। तुम चीजों को तोड़ भी सकते हो, इतनी आसक्ति हो सकती है।
मनस्विद कहते हैं, आत्मघाती लोग वे हैं जिनकी जीवन के साथ साधारण रूप से ज्यादा आसक्ति है, और लोगों की बजाय । उनकी जीवन के साथ ऐसी आसक्ति थी कि उन्होंने कहा कि हम हर किसी तरह न जीएंगे। उन्होंने कहा, हम तो मोती ही चुनेंगे, कंकड़-पत्थर न चुनेंगे। अगर कंकड़-पत्थर मिलते हैं, तो हम अपनी मोती की आकांक्षा लिए मर जाना पसंद करेंगे। उन्होंने कहा, हम घास-पात न खाएंगे, हम सिंह - शावक हैं। उन्होंने जीवन के साथ शर्तें रखीं, उनकी बड़ी आसक्ति थी । हर किसी ढंग से रहने को वे राजी न थे, क्योंकि रहने का उनका बड़ा खयाल था । बड़े सपने थे।
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