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आज बनकर जी!
मां-बाप के द्वारा बच्चों के प्रति हुआ है।
यह तो हमें मानकर भी भरोसा न होगा। क्योंकि मां-बाप, और अनाचार करें! मां-बाप तो प्राणपण से चेष्टा कर रहे हैं कि बच्चों का जीवन सुखद हो जाए। लेकिन तुम्हारी आकांक्षाओं से ही थोड़े ही किसी का जीवन सुखद होता है! कहावत है कि नर्क का रास्ता शुभेच्छाओं से पटा पड़ा है। बहुत से लोग नर्क में सड़ रहे हैं, क्योंकि शुभेच्छाओं के रास्ते पर जबर्दस्ती धकाए गए हैं। ____ तुम ध्यान रखना। आदमी की हिंसा इतनी गहन है कि वह दूसरे को सुख देने के नाम पर भी सता सकता है। और यह सताना बड़ा सुगम है, क्योंकि दूसरा रक्षा भी नहीं कर सकता। जब तुम किसी की गर्दन दबाते हो उसके ही हित में, तो वह चिल्लाकर यह भी नहीं कह सकता कि मेरी गर्दन छोड़ो। वह जाकर कहीं किसी से तुम्हारा विरोध भी नहीं कर सकता, शिकायत भी नहीं कर सकता, क्योंकि तुम उसी के लिए गर्दन दबा रहे हो, उसी के हित में दबा रहे हो। अगर मर भी जाए वह, तो तुम उसके हित के लिए ही मार रहे थे।
इसलिए बुद्ध और महावीर ने यह खतरा देखकर कि दूसरे को सख दो, यह तो सदियों से समझाया गया है, सुख के नाम पर लोगों ने दुख दिया है। और फिर उनके दुख को रोकने का उपाय भी नहीं रहा, क्योंकि सुख का लेबिल लगा था। लोग स्वर्ग के नाम पर लोगों को नर्क में ढकेलते रहे हैं। तुम जरा गौर करना अपने जीवन में, तो तुम्हें समझ में आ जाएगा। आदमी बड़ा चालाक है। ___मगर, चाहे तुम कहो, दूसरे को दुख मत दो; चाहे तुम कहो, दूसरे को सुख दो आदमी रास्ता निकाल लेता है। आदमी बुद्धपुरुषों को धोखा देने का उपाय खोज लेता है। . __इसलिए अक्सर ऐसा हुआ है, जब धर्म का एक पहलू लोग बिलकुल सड़ा चुके होते हैं, तब धर्म का दूसरा पहलू आ जाता है। वेद, उपनिषद विधायक थे। लोगों ने उस विधायक धर्म को बुरी तरह नष्ट कर दिया। तो बुद्ध और महावीर का आविर्भाव हुआ-नकारात्मक। फिर लोगों ने उनके नकारात्मक धर्म को नष्ट कर दिया, तो रामानुज, वल्लभ, चैतन्य, मीरा-भक्तों का उदय हुआ। उन्होंने फिर विधायक धर्म को स्थापित कर दिया। दिन और रात की तरह धर्म विधायक से नकार, नकार से विधायक की तरफ बदलता रहा है। लेकिन आदमी कुछ ऐसा है कि हर जगह से उपाय खोज लेता है। इससे सावधान रहना।
‘दंड से सभी डरते हैं, मृत्यु से सभी भय खाते हैं, अतः अपने समान ही सबको जानकर न मारे, न मारने की प्रेरणा करे।'
जीवन की आकांक्षा सार्वलौकिक है, सार्वभौम है। तुमने कभी-कभी इसके विपरीत घटना घटते देखी होगी–वह भी विपरीत नहीं। कोई आदमी आत्मघात कर लेता है। विचार करें। क्योंकि बुद्ध कहते हैं, न कोई मरना चाहता है, न कोई दंड
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