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अकेलेपन की गहन प्रतीति है मुक्ति
आखिरी प्रश्नः
अनाश्रव-पुरुष से क्या अर्थ है?
अना श्रव जैनों और बौद्धों का विशेष शब्द है। बड़ा बहुमूल्य शब्द है।
पारिभाषिक है। - उसका अर्थ होता है, चैतन्य की ऐसी दशा, जहां बाहर से कुछ भीतर नहीं आता। आश्रव का अर्थ होता है, आना। अनाश्रव का अर्थ होता है, जहां बाहर से भीतर कुछ भी नहीं आता। जैसे तुमने द्वार खोला, धूल उड़ी, भीतर आयी, यह आश्रव है। तुमने द्वार खोला, कुछ भी भीतर न आया-धूल न उड़ी, हवा भी न कंपी, कुछ भी भीतर न आया-यह अनाश्रव है।
साधारण आदमी आश्रव की अवस्था में है। कुछ भी करे, चीजें भीतर आ रही हैं। तुम राह से चले जा रहे हो, कोई कार गुजरी, एक क्षण को कार की झलक मिली, गयी, लेकिन आश्रव हो गया। तुम्हारे भीतर एक वासना जग गयी, ऐसी कार मेरे पास होनी चाहिए। कार तो गयी, लेकिन तुमने आश्रव कर लिया, धूल भीतर आ गयी। एक सुंदर स्त्री निकली, धीमा सा मन में एक सपना उठा कि ऐसी पत्नी मेरी होती। तुमने आश्रव कर लिया। तुम इस तरह आश्रव इकट्ठा कर रहे हो। और इस तरह की धूल इकट्ठी होती जाती है भीतर। यही धूल तुम्हारा बोझ है।
अनाश्रव का अर्थ है, कुछ भी भीतर नहीं आता। तुम देखते हो कोरी आंख से। देखते हो, लेकिन भीतर कुछ भी नहीं आता। कार गुजर जाती है, स्त्री गुजर जाती है।
ऐसा हुआ। पूर्णिमा की रात थी और बुद्ध एक जंगल में ध्यान करने बैठे थे। कुछ गांव के युवक एक वेश्या को लेकर जंगल में आ गए थे—मौज-मजे के लिए। उन्होंने खूब शराब डटकर पी ली, वेश्या के सब कपड़े छीन लिए, पर वे इतने शराब में धुत्त हो गए कि वेश्या ने मौका देखा और भाग निकली। जब उन्हें सुबह होते-होते भोर होते-होते होश आया, थोड़ी ठंडी हवा लगी, तो उन्होंने देखा, स्त्री तो भाग गयी। तो उसको खोजने निकले।
कोई और तो न मिला, बद्ध एक वृक्ष के नीचे बैठे मिल गए। तो उन्होंने पूछा, इस भिक्षु को जरूर–क्योंकि यहां से ही रास्ता जाता है, स्त्री यहां से गुजरी ही होगी, गुजरना ही पड़ेगा, और कोई रास्ता नहीं है तो पूछा आकर कि आप रातभर यहां थे? बुद्ध ने कहा, रातभर था। कोई स्त्री यहां से गुजरी? बुद्ध ने कहा, कोई गुजरा। स्त्री थी या पुरुष था, यह कहना मुश्किल है। उन्होंने पूछा, आंखें बंद किए थे कि खोलकर बैठ थे? बुद्ध ने कहा, आंखें खोलकर बैठा था। उन्होंने कहा, हैरानी की बात है। फिर तुम्हें पता न चला कि स्त्री है कि पुरुष? नग्न थी कि वस्त्र पहने थी? उन्होंने कहा, यह भी मुश्किल है। कोई गुजरा। लेकिन, बुद्ध ने कहा, तुम समझ न
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